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________________ श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ।। ( १८ ) स्थाप्याः, ततः समयभेदकरमेककं त्यक्तवा पञ्चकचतुष्कचिकठिकाः तावतस्तावतो वारान् स्थाप्याः, जाता चतुर्थं पंक्तिः सम्पूर्णा, प्रथ तृतीयपंक्ती द्विकरूपः परिवर्ताङ्कः, ततः पञ्चकं चतुष्कञ्च समयभेदकरं मुक्त वा त्रिकविकेककाः द्विद्विः स्वाध्याः, ततः पञ्चकं त्रिकच मुक्त वा चतुष्क द्विकैककाः द्विद्विः स्थाप्याः ततश्चतुष्क त्रिके ककाः, (१) सतः चतुष्कन्त्रिकद्विकाः, ततखिकद्विकैककाः, ततः पञ्चक त्रिककाः, ततः पञ्चकन्त्रिकठिका, एवमन्त्यादयोऽङ्काः समयभेदकरानङ्कान् मुक्त वा द्विद्विः स्थाप्याः, तावद् यावत् सम्पूर्णा तृतीया पंक्ति स्यात्, प्रदिपंक्तिद्वये च शेषावङ्की पूर्वङ्ग क्रमात् (२) द्वितीयभङ्ग तूत्क्रमात् (३) स्थायी, यावद् द्वे अपि पंक्ती सम्पूर्ण स्याताम् ॥१२॥१३॥ दीपिका- अब दो गाथाओंके द्वारा परिवृत्तों से (४) प्रस्तुत [५] मस्तार की युक्ति [६] को कहते हैं: अपने २ परिवर्तन के प्रमाण अर्थात् जितनी उन की संख्या है, उतने वार पश्चानुपूर्वीके द्वारा प्रथम पंक्तियों में अन्त्य ( 9 ) यादि (८) श्रङ्कों को नीचे २ रक्खे, परन्तु समयभेद (९) को छोड़ दे ( उक्त प्रह्नों को वहां तक रक्खे) जहां तक कि सब भङ्गों की संख्या पूरी हो जावे, हां यह विशेषता है कि प्रथम दो पंक्तियों में अर्थात् पहिली और दूसरी पंक्ति में शेष दो घों को क्रम और उत्क्रम से ] (१०) रखना चाहिये, पांच पदों को मान कर भावना (११) दिखलाई जाती है, जैसे देखो ! यहां पर अन्तिम (१२) पंक्ति पांचवी है, तथा उसमें परिवर्ताङ्क २४ है, इसलिये २४ वार पांच रूप अन्तका अङ्क रखना चाहिये, इसके पश्चात् चार, तीन, दो, एक, इन अङ्कों को क्रमसे चौवीस चौवीस वार नीचे २ रखना चाहिये, वहांतक जहांतक कि सब भङ्गों की संख्या १२० पूरी हो जावे, इस के पश्चात् चौथी पंक्ति में परिवर्ताङ्क छः है, अतः (१३) समयभेद को करने वाले अन्त्य भी पञ्चकको छोड़कर चार, तीन, दो, एक को छः छः वार रखना चाहिये, पीछे छः छः वार पांच को रखना चाहिये, इस के पश्चात् समयभेदकारी (१४) चार को छोड़ कर १- स्थाप्याः 'इतिशेषः, एवमग्रेऽपिज्ञेयम् ॥ २ - क्रमेण ॥ ३-उत्क्रमेण ४परिवर्ताङ्कों ॥ ५ कहे हुए ॥ ६ रीतिविधि ॥ ७ आखिरी ॥ ८-आदि शब्द से अन्त्य से पूर्व २ को जानना चाहिये ॥ ६ सद्गश अङ्कों की स्थापना ॥ १०-क्रम को छोड़ कर ॥ ११- उदाहरण, घटना ॥ १२- पिछली ॥ १३- इसलिये | १४- समयभेद ( सद्गशाङ्कस्थापना) को करनेवाले ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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