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________________ पञ्चम परिच्छेद ॥ ( १६५ ) श्रमणधर्म (९) को जानकर स्वकर्तव्य का पालन करते हैं, अतः अर्हत् आदि पांचों में उत्तर २ (२) की अपेक्षा पूर्व २ को प्रधानता (३) के द्वारा ज्येष्ठत्व (४) है, अतः प्रधानता के द्वारा ज्येष्ठानुज्येष्ठ क्रम को स्वीकार कर प्रथम अर्हन्तोंको, फिर सिद्धोंको, फिर प्राचार्योंको, फिर उपाध्यायों को तथा फिर irst नमस्कार किया गया है । ( प्रश्न ) - श्रहंदादि जो पांच परमेष्ठी नमस्कार्य हैं, उनके सम्बन्धमें पृथक् २ “मो" पदको क्यों कहा गया है, एक वार ( प्रादिमें ) ही यदि "मी" पद कह दिया जाता तो भी शेष पदों में उसका स्वयं भी अध्याहार हो सकता था ? ܢ अतः अनु ( उत्तर ) हां तुम्हारा कहना ठीक है कि यदि एक बार “मी” पद का प्रयोग कर दिया जाता तो भी शेष चार पदोंके साथ उसका अध्याहार हो सकता था, परन्तु इस महामन्त्र का गुणन श्रानुपूर्वी (५) अनानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी की रीति से भी होता है, जिसके भंगों की संख्या तीन लाख, वासट सहस्र, आठ सौ अस्सी पहिले बतलाई गई है, पूर्वीके द्वारा गुणन करने पर तो निःसन्देह प्रथम पदमें "मी" पदको रखने से शेष चारों पदोंमें "रामो” पदका अध्याहार हो सकता है, परन्तु पश्चानुपूर्वीके द्वारा गुणन करने पर ( सब पदों में "रामो" पदको न रखकर केवल आदि में रखने से ) उसका अन्वय पाचों नमस्कार्यों के साथ में नहीं हो सकता है, जैसे देखो ! पश्चानुपूर्वी के द्वारा इस मन्त्र का गुणन इस प्रकार होगा कि " पढमं हवाइ मंगलं ॥ ९ ॥ मंगलारां च सव्वेसिं ॥८॥ सव्वपावटपणासणो ||७|| एसोपंचणमोक्कारो ||६ ॥ णमो लोए सव्वसाहूणं ॥५॥ णमो उवज्झायाणं ॥४॥ णमो प्रायरियागं ॥३॥ णमो सिद्धाणं ॥ २॥ णमो अरिहंताणं || १॥ अर्थात् पश्चानुपूर्वी के द्वारा गुणन करने पर नवां, आठवाँ सातवाँ, aटा, पांचवां, चौथा, तीसरा दूसरा, और पहिला, इस क्रमसे गुणन होता है, अब देखो ! इस पश्चानुपूर्वीके द्वारा गुणन करनेपर प्रथम पद सबसे पीछे गुणा जाता है, अतः (६) यदि पांचों पदों में "रामो" पदका प्रयोग न किया जावे किन्तु प्रथम पदमें ही उसका प्रयोग किया जावे तो पश्चानुपूर्वीके १- साधुधर्म ॥ २-पिछले पिछले ॥ ३- मुख्यता ॥ ४- ज्येष्ठवृत्त श्रेष्ठता ॥ ५- आनुपूर्वी आदि का स्वरूप पहिले कहा जा चुका है ॥ ६-इसलिये ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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