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________________ (१७) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । किंकिलिन कुसुम बुढी, देवमणि धामरासणा इञ्च ॥ भावलय भेरि छत्तं जयति जिण पाडि हेराई ॥१॥ अर्थात् किंकिल्लि ( अशोकवृक्ष ) कुसुम वृष्टि, दिव्य वनि, चामर, आसमादि, भावलय, भेरी और छत्र, ये जिन प्रतिहार्य विजयशाली हो ॥१॥ इस कयन के अनुसार अहिन्त के आठ प्रातिहार्य हैं। अन्यत्र भी कहा है कि "अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि दिव्यध्वंनिश्चामरमासनन् । भामराल दन्दभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥१॥ अर्थात् अशोक वृक्ष, सुरपुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, चामर, श्रासन, भामण्डल (दीप्तिममूह ), दन्दभी और छत्र, ये जिनेश्वरों के सत्यातिहार्य (१) हैं ॥१॥ ये पाठ प्रातिहार्य श्री अरिहन्त के आठ गुण कहे जाते हैं। इन प्रातिहार्यों का संदेपसे इस प्रकार वर्णन है:... १-अशोक वृक्ष-जहां अरिहन्त विचरते हैं तथा समवसरण करते हैं वह . महाविस्तीर्ण, (२) कुसुमसमूह विलुब्ध भ्रमर निकर से युक्त, (३) शीतल मुंदर छोया के सहित, मनोहर, विस्तीर्ण शाखायुक्त, [४] भगवान् के देह परिमाण से बारहगुणा, अंशोक वृक्ष देवों से किया जाता है। उसी के नीचे विराज कर भगवान् धर्मदेशना [५] का प्रदान करते हैं। __२-मुर पुष्पवृष्टि-जहां भगवान् समवसरण करते हैं वहां समवसृत (६) भमि के चारों ओर एक योजन तक (७) देवजन घटनों के बरावर श्वेत, रक्त, पीत, नील और श्याम वर्ण के, जल और स्थल में उत्पन्न हुए, विकखर (८), सरस () और सुगन्धित सचित्त पुष्पोंको लेकर ऊर्ध्वमुख (२०) तथा निम्न बीटकर वृष्टि करते हैं। ३-दिव्यश्वनि-जिस समय भगवान् अत्यन्त मधर स्वर से सरस (११), अमृतसमान, सकल लोक को प्रानन्द देने वाली वाणी से धर्म देशना (१२) करते हैं उस समय देवगण भगवान् के स्वर को अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा अखण्ड कर पूरित करदेते हैं, यद्यपि प्रभ की वाणी में मधुर से भी मधर पदार्थ की अपेक्षा भी अधिक रस होता है तथापि भव्य जीवों के हित के १-पहा प्रातिहार्य ॥ २-अत्यन्त विस्ताररायुक्त ॥ ३-पुष्पोंके सम्ह पर लुभाये हुर भ्रमरों के समूह से युक्त ॥ ४-लम्बी शाखाओं वाला ५-धर्मोपदेश ॥ ६-समवसरण से युक्त ॥ ७-चार कोम तक ॥ •८-खिले हुए ॥ १-विना सूखे ॥ १०-ऊपर को ओर मुख ॥ ११-रसीली ॥ १२-धर्मोपदेश ।। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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