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________________ १४२) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ प्रथम पद से लेकर नौनों पदों को जोड़ने से पैंतालीस होते हैं ( जैसे एक और दो तीन हुए, तीन में तीन जोड़ने से छः हुए, छः में चार जोड़ने से दश हुए, दशमें पांच जोड़ने से पन्द्रह हुए, पन्द्रह में छः जोड़ने से इक्कीस हुए, इक्कीस में सात जोड़ने से अट्ठाईस हुए, अट्ठाईस में पाठ जोड़ने से छ. तीस हुए तथा छत्तीस में नौ के जोड़ने से पैंतालीस हुए ) इन पैंतालीस से यह तात्पर्य है कि जो पुरुष प्रथम पद से लेकर नौनों पदों की क्रिया को विधिवत् ( १ ) कर लेता है वह पैंतालीस रूप होजाता है तथा उसका लेखा संसार से ड्योढ़ा होजाता है और उसके लिये अर्धक्षण मात्र संसार रहता है, इत्यादि पूर्ववत् ( २ ) जानना चाहिये। - (प्रश्न) कोई लोग “हवइ मंगलं" के स्थान में “होइ मंगल” ऐसा पाठ मानकर चलिका सम्बन्धी पिछले चार पदों में बत्तीस ही अजरों को मानते हैं; क्या वह ठीक नहीं है? (उत्तर) “हवइ” के स्थान में “होइ” शब्द के पढ़ने से यद्यपि अर्थ में तो कोई भेद नहीं होता है; परन्तु "हो" शब्द के पढ़ने से चार पदों में बत्तीस अक्षरों का होना रूप दूषणा (३) है, क्योंकि मूलमन्त्र के ३५ तथा पि. छले चार पदों में “हवइ” पढ़कर तेंतीस अक्षरों के मिलने से ही ६८ अक्षर होते हैं, जिमका होना पूर्व लिखे अनुसार आवश्यक है, देखो ! श्रीमहानिशीथ सिद्धान्त में कहा है कि “तहेव इक्कारस पयपरिच्छिन्नति पालावगतितीस अक्खर परिमाणं, एसो पंचणमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सध्वेसिं पढम हवह मंगलं तिचूलम्" अर्थात् परमेष्ठि नमस्कार रूप मूल मन्त्र ग्यारह पदोंसे परिच्छिन्न (४) है (५) उसके प्रभाव द्योतक (E) पिछले चार पदों के अक्षरों का परिमाण तेतीस हैं, (७) तद्यथा “एसो पंचणामुक्कारो, स. व्यपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि, पढ़मं हवा मंगलं” ऐसा चूलिका में कथन है। किञ्च-अर्थभेद न होने पर भी (5) 'होय मंगलं, ऐसा पाठ न मान कर "हवइ मंगलं” ऐसा ही पाठ मानना चाहिये कि जिससे चारों पदों में १-विधिपूर्वक, विधि के अनुसार ॥२-पूर्वकथन के अनुसार ॥ ३-दोष ॥ ४यक्त, सहित ॥५-अर्थात् आदि के पांच पद रूप मूल मन्त्र में कुल ग्यारह पद हैं। प्रभाव को बतलाने वाले ॥ ७-अर्थात् पिछले चार पदों में ३३ अक्षर हैं ॥ ८-अर्थ में भेद न पड़ने पर भी ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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