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________________ पञ्चम परिच्छेद || ( १६१) अथवा - ज्ञानाचार आदि पांच प्रकार के आचार के पालन करने में जो अत्यन्त प्रवीण हैं तथा दूसरों को उन के पालन करने का उपदेश देते हैं । उनको आचार्य कहते हैं । अथवा जो मर्यादापूर्वक विहार रूप आचार का विधिवत् पालन करते हैं तथा दूसरों को उस के पालन करने का उपदेश देते हैं उनको प्राचार्य कहते हैं (९) । अथवा - युक्तायुक्त विभागनिरूपणा (२) करने में अकुशल (३) शिष्यजनों को यथार्थ (४) उपदेश देने के कारण आचार्य कहे जाते हैं । ( प्रश्न ) – उक्त लक्षणों से युक्त प्राचार्यों को नमस्कार करने का क्या कारण है ? ( उत्तर ) - आचार (५) के उपदेश करने के कारण जिनको परोपकारित्व (६) की प्राप्ति हुई है तथा जो ३६ गुणों से सुशोभित हैं, युग प्रधान हैं, सर्व: जन मनोरञ्जक (9) हैं तथा जगद्वर्त्ती (८) जीवों में से भव्य जीव को जिनवाणी का उपदेश देकर उसको प्रतिबोध (९) देकर किसीको सम्यक्त्व की प्राप्ति कराते हैं, किसी को देश विरति की प्राप्ति कराते हैं, किसी को सर्वविरति की प्राप्ति कराते हैं तथा कुछ जीव उनके उपदेश का श्रवण कर भद्रपरिणामी (१०) हो जाते हैं, इस प्रकार के उपकार के कर्त्ता शान्तमुद्रा के धर्त्ता, उक्त प्राचार्य क्षणमात्रके लिये भी कषाय ग्रस्त (१९) नहीं होते हैं, अतः वे अवश्य नमस्कार करने के योग्य हैं । किञ्च - उक्त प्राचार्य नित्य प्रमाद रहित होकर प्रप्रमत्त (१२) धर्म का कथन करते हैं, राजकथा; देशक या; स्त्री कथा; भक्तकथाः सम्यक्श्वशैथिल्य (१३) १- कहा भी है कि- “ पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासंता ॥ आयारं दंसंता, आयरिया तेण वुच्चति ॥ २ ॥ अर्थात् पांच प्रकार के आचार का स्वयं सेवन कर तथा प्रयास के द्वारा जो दूसरों को उस आचार का उपदेश देते हैं, इसलिये वे आचार्य कहे जाते हैं ॥ १ ॥ २ - योग्य और अयोग्य के अलग २ निश्चय ॥ ३ - अचतुर, अव्युत्पन्न ॥ ४-प्तत्य ॥१५- सद् व्यवहार ॥ ६- परोपकारी होने ॥७- सब जनों के मन को प्रसन्न करने वाले ॥ ८-संसार के ॥ ६-ज्ञान ॥ १०-श्रेष्ठ परिणाम वाले ॥ ११-कपायों में फँसे हुए ॥ १२-प्रमाद से रहित, विशुद्ध, ॥ १३- सम्यक्त्वमें शिथिलता ॥ २१ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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