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________________ पञ्चम परिच्छेद || ( १५६ ) कारण यह भी है कि षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करने पर " " पदका सहयोग होता है जोकि सिद्धि प्राप्ति का प्रधान साधन है, इसका वर्णन श्रागे किया जावेगा । ( प्रश्न ) - उक्त प्रयोग में षष्ठी के बहुवचनका जो प्रयोग किया गया है; उसका क्या कारण है ? (उत्तर) प्रथम कारण तो यह है कि अर्हत बहुत से हैं अतः बहुतों के के लिये बहुवचन का प्रयोग होता ही है, दूसरा कारण यह भी है कि विषय बहुव के द्वारा नमस्कार कर्ता को फलातिशय की प्राप्ति होती है, इस बात को प्रकट करने के लिये बहुवचन का प्रयोग किया गया है, तीसरा कारण यह भी है कि गौरव प्रदर्शन के हेतु बहुवचन का ही प्रयोग किया जाता है (९) । ( प्रश्न ) श्री अर्हदेव का ध्यान किसके समान तथा किस रूप में करना चाहिये । ( उत्तर ) - श्री अर्हद्देव का ध्यान चन्द्र मण्डल के समान श्वेत (२) वर्ण में करना चाहिये । ( प्रश्न ) " णमो सिद्धाणं” इस दूसरे पदसे सिद्धोंको नमस्कार किया गया है; उन ( सिद्धों ) का क्या स्वरूप है अर्थात् सिद्ध किनको कहते हैं ? (उत्तर) - निरुक्ति के द्वारा सिद्ध शब्द का अर्थ यह है कि "मिष्ट प्रकारकं कर्म श्रमायैस्ते सिद्धा: " अर्थात् जिन्होंने विर कालसे बंधे हुए आठ प्रकार के कर्मरूपी इन्धन समूह को जाज्वल्यमान शुक्ल ध्यानरूपी अग्नि से जला दिया है उनको सिद्ध कहते हैं । अथवा " ""षिधु गती" इस धातु से “सिद्ध शब्द बनता है; अतः पुन रावृत्ति के द्वारा जो मोक्षनगरी में चले गये हैं उनको सिद्ध कहते हैं । - जिनका कोई भी कार्य परिपूर्ण नहीं रहा है उनको सिद्ध अथवा कहते हैं । अथवा जो शिक्षा करने के द्वारा शास्त्र के वक्ता हैं उनको सिद्ध कहते हैं । १- बहुवचन के प्रयोग के उक्त तीनों कारण पांचों पदों में जान लेने चाहिये ॥ २-सफेद ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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