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________________ अथ पञ्चमः परिच्छेदः । श्री पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार अर्थात् श्रीनवकार मन्त्र के विषय में आवश्यक विचार | - ( प्रश्न ) - " पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार" इस पद का क्या अर्थ है ? ( उत्तर ) - उक्त पद का अर्थ यह है कि- "पांच जो परमेष्ठी हैं उन को नमस्कार करना । ( प्रश्न ) - पांच परमेष्ठी कौन से हैं ? ( उत्तर ) - अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये पांच परमेष्ठी हैं । ( प्रश्न ) - इन को परमेष्ठी क्यों कहते हैं ? ( उत्तर ) - परम अर्थात् उत्कृष्ट स्थान में स्थित होने के कारण इन को परमेष्ठी कहते हैं ( १ ) । ( प्रश्न ) - परमेष्ठि नमस्कार के नौ पद कहे गये हैं, वे नौ पद कौन कौन से हैं ? ( उत्तर ) - परमेष्ठि नमस्कार के नौ पद ये हैं । 1 १ - णमो अरिहन्ताणं । २- णमो सिद्धाणं । ३ - णमो प्रायरियाणं । ४ - णमो वझायाणं । ५- रामो लोए सव्त्र साहूणं । ६- एसो पञ्च णमोक्कारो सव्वपावपणासणो । ८ - मङ्गलाणं च सव्वेसिं । - पढमं हवह मङ्गलम् ॥ प्रश्न - इस पूरे मन्त्र का ( नौनों पदों का ) क्या अर्थ है ? उत्तर- इस पूरे मन्त्र का अर्थात् नौओ पदों का अर्थ यह है १ - तों (२) को नमस्कार हो । २- सिद्धों को नमस्कार हो । ३ - प्रा 6 १-" परमे उत्कृष्टे स्थाने तिष्ठतीति परमेष्ठिनः” अर्थात् जो परम (उत्कृष्ट ) स्थान में स्थित हैं; उन को परमेष्ठी कहते हैं ॥ २- अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, इन शब्दों की व्युत्पत्ति, अर्थ, लक्षण तथा गुण आदि विषयों का वर्णन आगे किया जायेगा || Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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