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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ (हां (१) ) श्रीं अहं असि आ उसा नमः (२) ॥ ये दोनों ही मन्त्र सर्व कामनाओं को देनेवाले हैं।
१३-अरिहंतसिद्ध (३) प्रायरिय उत्रज्झाय साधु ॥ इस सोलह अक्षर वाली विद्या का २०० वार जप करनेसे चतुर्थ फल प्राप्त होता है॥
१४-नाभि कमल में (आ) का मस्तक काल में (सि) का, मुखकमल में (अ.) का, हदय कमल में (उ) का तथा कण्ठ में (सा) का जप करना चाहिये, इसका जप सर्व कल्याण कारक है।
१५-ओं (४) णमो अरहताण नाभौ, ओं णमो सिद्धाण हृदि. ओं णमो आयरियाण कण्ठे, ओं णमो उवज्झायाण मुखे, ओं णमो लोए सव्व. साहूणं मस्तके, सर्वाङ्गषु मां रक्ष रक्ष हिलि हिलि मातङ्गिनी स्वाहा ॥ यह रक्षा का मन्त्र है।
१६-ओं ह्रौं णमो अरिहताण पादौ रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं णमो सिद्धाण कटीं रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं णमो आयरियाण नाभिं रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं णमो उव. उझायाण हृदयं रक्ष रक्ष, ओं ही गमो लोए सव्वसाहूण ब्रह्माण्डं रक्ष रक्ष ओं ह्री एसो पंच णमोकारो शिखां रक्ष रक्ष, ओं ह्रीं सव्वपावप्पणा सणो आसनं रक्ष रक्ष, ओं ही मंगलाणच मवेसिं पढ में हवइ मंगलं प्रात्मचक्षुः परचक्षुः रक्ष रक्ष ॥ यह रक्षा का मन्त्र है ॥
१७-ओं णमो अरिहताण अभिणिमोहिणि मोहय मोहय स्वाहा ॥ मार्ग में जाते समय इस विद्या का स्मरण करने से चोर का दर्शन नहीं होता है।
१८-ओं (५) हीं श्रीं ह क्लीं असि आ उसा चुल चुलु हुल हुलु कुलु कुलु
१-"ह्रीं” की अपेक्षा "हां" यही पाठ ठीक प्रतीत होता है । २-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्रसमह” पुस्तक में “ओं अहं सः ओं अहँ में श्रीं अ-सि-आ-उ-सा नमः”ऐसा मन्त्र है, ऐसा मन्त्र मानने पर भी “अहँ” के स्थान में "अहँ” तथा “मैं” के स्थानमें “ऐं” ऐसा पाठ होना शहिये ॥ ३-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्रसङ्ग्रह" में "अरुहन्तसिद्धआयरिय उवज्झाय सब्यसाहूणं" ऐसा मन्त्र है तथा वहां इस मन्त्र का फल द्रव्य प्राप्तिरूप कहा गया है ॥ ४-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्रसङ्ग्रह” पुस्तक में “ओं णमो अरुहन्ताणं, ओं णमो उवज्झायाणं, ओं णमोलाए सवसाहणं, सर्वाङ्ग अग्हं ग्क्ष हिल हिल मातङ्गनी स्वाहा ऐसा मन्त्र है। ५-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्र संग्रह" पुस्तक में “ओं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं अ-सि-आ-उ-सा चुलु चुलु हुलु हुलु भुलु भुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा ॥ त्रिभुवन स्वामिनी विद्या" ऐसा मन्त्र पाठ है ॥
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