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________________ ( १४२ ) श्रीमन्त्रराज गुणकल्पमहोदधि ॥ श्री नमस्कार कल्प (९) में से उद्धृत उपयोग (२) विषयका भाषानुवाद | नमः श्री पञ्चपरमेष्ठिने ॥ अव सम्प्रदायते तथा अपने अनुभव से पञ्च परमेष्ठियोंके कुछ प्राम्नाय लिखे जाते (३) हैं: १ - इस ग्रन्थ को किसने और कब बनाया, इस बात का निश्चय नहीं होता है; क्योंकि ग्रन्थकी आदि तथा अन्तमें ग्रन्थकर्त्ताका नाम नहीं है, ग्रन्थ के अन्त में केवल यही लिखा है कि- " इति नमस्कारकल्पः समाप्तः संवत् १८६६ मिते माघवदि ६ श्री बीकानेरे लि० पं० महिमाभक्तिमुनिना” अर्थात् "यह नमस्कार कल्प समाप्त हुआ, संवत् १८६६ में माघवदि ६ को श्रीषीकानेर में पण्डित महिमाभक्ति मुनि ने लिखा " किन्तु यह जानना चाहिये कि इस ग्रन्थ के प्राचीन होने में कोई शङ्का नहीं है, किञ्च "इस के सब ही आम्नाय सत्य हैं" यह विद्वान् जनों का कथन इल ग्रन्थ में भक्ति को उत्पन्न करता ही है, अतः इस का कोई भी विषय शङ्कास्पद नहीं है । २- यद्यपि अहमदाबाद के "नानालाल मगनलाल " महोदय के लिखित, मुम्बई नगर के "मेघजी हीरजी " महोदय के द्वारा प्रकाशित तथा अहमबादस्थ - श्रीसत्यविजय प्रिण्टिङ्ग प्रेस" नामक यन्त्रालय में मुद्रित "श्री नवकार मन्त्रसङ्ग्रह नामक पुस्तक में वशीकरणादि प्रयोगों के भी विविध मन्त्र विधिपूर्वक प्रकाशित किये गये हैं तथापि विधि विशेष की प्राप्ति होने पर राग द्वेष युक्त मन वाले, संसार वर्त्ती किन्हीं अनधिकारी प्राणियोंकी अथवा उन के द्वारा दूसरों की हानि न हो, यह विचार, कर सर्व साधारण के उपयोगी विषय ही इस ( नमस्कार कल्प ) ग्रन्थ में से उद्धृत कर यहां पर लिखे जाते हैं, आशा है कि- सहृदय पाठक मेरे इस विचार का अवश्य अनुमोदन करेंगे । ३-यहां पर पाठक जनोंके परिज्ञानार्थ पूर्वोक्त "श्री नवकारमन्त्रसङ्ग्रह " में से उद्धृत कर मन्त्र साधने की विधि लिखी जाती है-मन्त्र साधने की इच्छा रखने वाले पुरुष को प्रथम निम्नलिखित नियमोंका सावधानी के साथ पालन करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से ही मन्त्र के फल की प्राप्ति हो सकती है, जिस मन्त्र के प्रयोगमें जिस सामान की आवश्यकता हो उसे सावधानी से तैयार करके पास में लेकर ही बैठना चाहिये क्योंकि जप करते समय उठना वर्जित है, बैठने का आसन उत्तम प्रकार को डाभ का अथवा लाल, पीला, सफेद, मन्त्रकी विधिके अनुसार होना चाहिये, इसी प्रकार जिस मन्त्र के प्रयोग में जिस प्रकार के ओढ़ने के वस्त्र की आज्ञा दी गई है। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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