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________________ ( १०६) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ को चन्द्रमार्ग से नाभिकमल में स्थापित करदे, इस प्रकार यथार्थ मार्ग से निरन्तर निष्क्रमण (१) और प्रवेश को करने वाला अभ्यासी पुरुष नाड़ी शुद्धि को प्राप्त होता है ॥ २४४ ॥ २४७ ॥ इस प्रकार नाड़ी शुद्धि में अभ्यास के द्वारा कुशल होकर बुद्धिमान् न. नुष्य अपनी इच्छा के अनुसार उसी क्षण पुटों (२) में वायु को घटित (३) कर सकता है ॥ घाय एक नाड़ी में ढाई घड़ी तक ही रहता है; तदनन्तर उस नाड़ी को छोड़कर दूपरी गाड़ी में चला जाता है ॥ २४० ॥ ___ स्वस्थ मनुष्य में एक दिन रात में प्राणवायु का श्रागम (४) और निर्गम (५) पछीस सहस्र छःसौ वार होता है ॥ २५० ।। जो मुग्ध बुद्धि (६) मनुष्य वायु के सङ्क्रमण (७' को भी नहीं जानता है वह तत्त्वनिर्णय (८) की वार्ता को कैसे कर सकता है ? ॥ २५१ ॥ पूरक वायु से पूर्ण किया हुआ अधोमुख (९) कमल प्रफुल्लित (१०) हो जाता है तथा वह ऊर्ध्वश्रोत (१९) होकर कुम्भक वाय से प्रबोधित (१२) हो जाता है, इस के पश्चात् रेचक से पाक्षिप्त (१३) कर वायु को हृदय कमल से खींचना चाहिये तथा उसे ऊर्ध्व श्रोत कर मार्ग की गांठ को तोड़कर ब्रह्मपुर में लेजाना चाहिये, पीछे कुतूहल (१४) करने वाला योगी उसे ब्रह्मरन्ध्र (१५) से निकाल कर समाधियक्त (१६) होकर धीरे २ आक की रुई में वेधित करे, सस में वारंवार अभ्यास कर मालतीके मुकुल (१७) आदिमें तन्द्रा रहित (१८) होकर स्थिर लक्ष के द्वारा सदा वेध करे, तदनन्तर उस में दूढ अभ्यास याला होकर वरुण यायु से कर्पूर, (१९) अगुरु (२०) और कुष्ठ (२१) आदि गन्ध द्रव्यों में अच्छे प्रकार वेध करे, तदनन्तर इन में (२२) लक्ष को पाकर तथा धायु के संयोजन (२३) में कुशल (२४) होकर उद्यम पूर्वक सूक्ष्म पक्षिशरीरों में १-निकलना ॥ २-छिद्रों ॥ ३-रुद्ध रुका हुआ ॥४-आना ॥ ५-निकलना ॥ ६-मोह से युक्त बुद्धि वाला, अज्ञानी ॥ ७-गमन की क्रिया ॥ ८-नत्व के निश्चय ॥ १-जीचे की ओर मुख वाले ॥ १०-फूला हुआ ॥ ११-ऊपर की ओर पङ्खड़ियों वाला॥ १२-खिला हुआ॥ १३-फेंका हुआ ॥ १४-कौतुक ॥ १५-ब्रह्मछिद्र ॥ १६-एकाग्र चित्त ॥ १७-कली ॥ १८-ऊंघ से रहित ॥ १६-कपूर ॥ २०-अगर ॥ १२-कूट ॥ २२-ध्यान की सफलता ॥ २३-जोड़ना ॥ २४-चतुर ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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