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________________ तृतीय परिच्छेद ॥ (१०१) अभ्यास के द्वारा उक्त चारों मण्डल अपने आप ही जान लिये जाते हैं, इन चारों मण्डलों में क्रम. से घूमने वाले वायु को भी चार प्रकार का जा. नना चाहिये ॥ ४७ ॥ पीत (१) वर्गों के द्वारा नासिका के छिद्र को भर कर-धीरे २ चलने वाला, कुछ उष्ण, आठ अंगुल प्रमाण घाला तथा स्वच्छ वायु पुरन्दर (२) कहा जाता है ॥ ४ ॥ श्वेल, शीतल, नीचे के भाग में शीघ्र २ चलने वाला तथा १२ अङ गुल परिमाण वाला जो वाय है उसे वरुण कहते हैं ॥ ४ ॥ __उष्णा, शीत, कृष्ण, निरन्तर तिरला चलने वाला तथा छः अङ गुल प. रिमाण वाला वायु पवन नामक है ॥ ५० ॥ बाल सूर्य (३) के समान ज्योति वाला, अतिउष्णा, चार अङ गुल प्रमाण वाला, श्रावत युक्त (४) तथा ऊपर को चलने वाला जो वायु है उसे दहन (५) कहते हैं ॥ ५१ ॥ ___ स्तम्भनादि कार्यों में इन्द्रको, उत्तम कार्यों में वरुण को, मलीन तथा चञ्चल कार्यों में वाय को, तथा वश्य प्रादि कार्यों में बहू को उपयोग (६) में लाना चाहिये ॥ ५२ ॥ ___पुरन्दर वायु-छत्र, (9) चामर, (८) हस्ती, (९) अश्व, (१०) श्राराम (११) और राज्यादि सम्पत्ति रूप अभीष्ट फल को सूचित करता है, वरुण वायु राज्यादि से सम्पूर्ण पुत्र स्वजन तथा बन्धुओं के साथ तथा सार (१२) वस्तु के साथ शीघ्र ही संयोग कराता है, पवनके होने पर कृषि और सेवा प्रादि सिद्ध भी सब कार्य नष्ट हो जाता है, मृत्यु का भय, कलह वैर और त्रास (२३) भी होता है, दहन स्वभाव वाला (१४) दहन (१५) आयु भय, शोक, रोग, दुःख, विघ्नसमूह की श्रेणि (१६) तथा विनाश को सूचित करता है ॥५३-५६ ॥ ऊपर कहे हुए ये सब ही वायु चन्द्र और सूर्यके मार्गसे मण्डलों में प्रवेश १-पीले॥२-इन्द्र नामक ॥ ३-उदय होते हुए सूर्य ॥ १-चकरदार ॥५-अग्निनामक ॥ ६-व्यवहार ॥ ७-छाता॥ ८-चंवर ॥ -हाथी ॥१०-घोड़ा ॥ ११-बाग ॥ १२-उत्तम ॥ १३-भय ॥ १४-जलाने के स्वभाव से युक्त ॥ १५-अग्निनामक ॥ १६-प क्ति, कतार ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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