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________________ अंक ३ ] सत्यपुरोय श्रीमहावीर उत्साह, परिचय जिन महंतु गिरिवरह मेरु, गहगणह दिवायर, जिम महंतु सु सर्ववरमणु उवहिहिं रयणायरु; जिम महंतु सुरवरह मज्झि सुरलोइ सुरेसरु, तिम महंतु तियलोयलिउ सच्चरि जिणेसरु, उद्दव दियरह तेउ, गहवर सोमत्तणु, पं० धणपालकृतः श्रीसत्यपुरमंडन - श्रीमहावीरउत्साहः समासः [ २४ गंभीर सायरह, हरवि मंदिरह थिरत्तणुः aise वीरु नं अमिर लेवि सच्चरि सुणिज्जइ, तिहुअणि तसु पडिबिंबु नत्थि जसु उप्पम दिज्जइ ॥ १२ ॥ कोरिंट, सिरिमाल, धार, आहाड, नराणजं, अणहिलवाड, विजयकोट्टु, पुण पालित्ताणुं । पिक्खिवि ताव बहुत ठाम मणि चोज्जु पईसर, जं अज्जवि सच्चरि वीरु लोयणिहि न दीस सहस्से व लोह तत्थु न होइ नियंतह वयणसहस्सेहि गुणनतु निट्ठियहि थुणंतह एक जीह धणपालु भइ इक्कु जं मह नियतणु, किं वन्न सच्चाउरि-वीरु हउं पुणु इक्काणणु. रक्ख सामि परंतु मोहु नेहुंडय तोडहि, सम्मर्दसणि नाणु चरणु भड कोहु विहाडहि ; करि पसाउ सच्चरि वीरु जइ तुहु मणि भावइ, तर तु धणपालु जाउ जहि गयउ न आवइ. Aho ! Shrutgyanam ॥ ११ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ।। १५ ।।
SR No.009882
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 03 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1924
Total Pages190
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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