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________________ क. महाकवि पुष्पदन्त और उनका महापुराण ७३ annow wwA परिशिष्ट नं. ३ ( उत्तरपुराण के अन्त का कुछ अंश ।) णिखुए वीरे गलियमयरायड इंदभूह गणि केवलि जायउ। सो विउलहरिहेगउणिव्याणहो कम्मविमक्कत्रो सासयठाणडो॥१॥ तहिं वासरे उप्पएणउ केवल मुणि हे सुधम्महो पक्वालियमलु। तं णिव्वाणए जंबू णामहो पंचमु दिवणाणु हयकामहो ॥२॥ गदि मुणंदिमित्तु अवरुवि मुणि, गोवद्धणु चउत्थु जलहरणि । ए पच्छए समत्य सुयपारय गिरसियमिच्छामयमवणीरय ॥३॥ पुण विविसह जह पोठिलु खत्तिउ जयणाउ वि सिद्धत्थुह यत्ति दिहिणंकउ विजउ बुद्धिलउ, गंगु धम्मसेणु विणीसल्लउ ॥४॥ पुण णक्खत्तउ पुणु जसवालउ, पंडु णामु धुवसेणु गुणालउ । घत्ता । अणु कंसउ अप्पर जिणे वि थिउ पुणु सुहद्दु जणसुहयरु । असभद्दु अखुदु अमंदमह णाणे णावा गणहरु ॥५॥ भरबाहु लोहंकु भडारउ आयारांगधारि जससारउ ।। एयहिं सव्व सत्यु मणे माणिउ, सेसाहि एक्कु देख परियाणिउं ॥ ६ ॥ जिणसेणेण वीरसेणेण वि जिणसासणु सेविउ मयगिरिपवि। पुव्वयाले णिसणिउं सई भरहे, राएं रितु-वहुदावियविरहें ॥ ७ ॥ एवं रायपरिवाडिए णिसुणिउं, धम्मु महामुणिणाहहिं पिसुणिउ । सेणियराउ धम्म सोयारहं. पच्छिलउ धज्जियभयभारहं ॥ ८ ॥ ताहमि पच्छए बहुरसणडिए, भरहे काराविउ पद्धडियए। पदेवि सुणेवि पायरणेवि हयकले, पयडिउ मम्माएं इय माहेयले ॥१॥ कम्मक्खयकारणु गणे दिउं, एम महापुराणु मई सिठ्ठउं । एत्यु जिणिंद मग्गे श्रोणाहिउ, बुद्धिविहीणे जं मई साहिउ ॥ १०॥ तं महो खमहो तिलोयही सारी, अरुहुम्गय सुअएवि भडारी । चवीस वि महुं कलुस खयंकर, दंतु समाहि बोहि तित्थंकर ॥ ११ ॥ पत्ता । दुई छिंदउ एंदउ भुयणयले णिरुवम करणरसायणु। आयएणउ मएणउ ताम जणु जाम चंदु तारायणु ॥१२॥ परिसउ मेहजालु वसुहारहि, महि पिचउ बहु धरणपयाहिं। वंदउ सासणु वीर जिणेसहो, सेणिउ णिग्गड गरयणिवासहो॥१३॥ लग्गउ ण्हवणारंभहो सुरवइ, रणदउ पय सुहं णंदउ गरवह। णंदउ देस सुहिक्खु वियंभउ, जणु मिच्छसु दुचित्तु णिसुभउ ॥ १४॥ दु:खों का नाश हो और यह कर्णरसायन काव्य पृथ्वीतल पर विस्तार लाभ करे । जब तक चन्द्रमा और तारे हैं, तब तक लोग इसे सुनें और इसका आदर करें ॥ १२॥ पृथ्वी पर मेघ खूब बरसें और तरह तरह के धान्य पकें, वीरभगवान का शासन बढ़े, राजा श्रेणिक नरक निवास से बाहर निकले और ( तीर्थकर होने पर) इन्द्र उस का जन्माभिषेक करें । प्रजा का सुख बढे और राजा आनन्दित हो । देश में सुाभेक्ष (सुकाल) हो और लोगों का मिथ्यात्व भाव नष्ट हो ॥ १३-१४॥ अंकित Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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