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________________ जैन साहित्य संशोधक [ खण्ड ३ हमे सब से पहले बंबई के सुप्रसिद्ध सठे सुखानन्दजी की कृपा से पुष्पदन्त का आदिपुराण देखने को मिला और उसी को देखकर हमें इस कवि का परिचय लिखने का उत्साह हुश्रा । सेठजी इस ग्रन्थ को फतेहपुर (जयपुर) के सरखतीभण्डार से लाये थे । उक्त सरखतीभण्डार का यह ८६ वे नम्बर का ग्रन्थ है और बहुत ही शुद्ध है। उसमें कहीं कहीं टिप्पणी भी दी है, वि० संवत्१५२८ का लिखा हुआ है उसमे प्रति करानेवाले की एक विस्तृत प्रशस्ति दी हुई है जो उपयोगी समझ कर इस लेख के परिशिष्ट में दे दी गई है। इस ग्रन्थ की दो प्रतियां हमें पूने के भाण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टिटयूट में मिलीं जिनमें से एक वि० सं० १९२५ की लिखी हुई है और दूसरी वि० सं० १८८३ की लिखी हुई है । इस ग्रन्थ का एक टिप्पण भी हमें उक्त संस्था में मिला जो प्रभाचन्द्र कृत है और जिसकी या १६५० हे*। इसमें प्रति लिखने का और टिप्पणकार का समय अादि नहीं दिया है। इसके बाद उक्त इन्स्टि० में हमें उत्तरपुराण की भी एक शुद्धप्रति मिल गई जो बहुत ही शुद्ध है और सं० १६३० की लिखी हुई है। इस पर यत्र तत्र टिप्पणियां भी दी हुई हैं । यशोधर चरित की एक प्रति हमें बंबई के तेरहपन्थी मन्दिर के पुस्तकभण्डार से प्राप्त हुई जो बहुत ही पुरानी है अर्थात् १३६० की लिखी हुई है और प्रायः शुद्ध है, और दुसरी भाण्डारकर इन्स्टि० से, जो वि० संवत् १६१५ की लिखी हुई है।। इस इन्स्टिटयूट में हरिवंशपुराण की भी एक बहुत ही शुद्ध, टिप्पणयुक्त, और प्राचीन प्रति है, मिलान करने से मालूम हुआ कि यह उत्तरपुराण का ही एक अंश है। पुष्पदन्त के ग्रन्थ पूर्वकाल में बहुत प्रसिद्ध रहे हैं और इस कारण उनकी प्रतियां अनेक भण्डारी में मिलती हैं। उन पर टिप्पणपंजिकाये और टिप्पणग्रन्थ भी लिखे गये है करने से अब भी प्राप्त हो सकते हैं । जयपुर के पाटोदी के मन्दिर में उत्तरपुराण का एक टिप्पण ग्रन्थ है जिसके कर्ता श्रीचन्द्र (१) मुनि मालूम होते हैं और जो विक्रम संवत् १०८०में भोजदेव के राज्य में बनाया गया है । जयपुर के बाबा दुलीचन्दजी के भण्डार में पुष्पदन्त के प्रायः सभी ग्रन्थों की पंजिकायें हैं; श्रागरे के मोतीकटरे के मन्दिर में उत्तरपुराण की पंजिका है । प्रयत्न करने पर भी हम इन्हें प्राप्त नहीं कर सके। इस समय हम पुष्पदन्त के नागकुमार चरित और उनके ग्रन्थों को पंजिकाओं को प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं । उनके मिल जाने पर आगामी अंक में पुष्पदन्त का समय निर्णय किया जायगा और उनके ग्रन्थों में जिन जिन व्यक्तियों का उल्लेख हुअा है उन सब के समय पर विचार करके निश्चित किया जायगा कि वास्तव में पुष्पदन्त के ग्रन्थ कब बने हैं। आगामी अंक में पुष्पदन्त को भाषा और उनके कवित्व को भो आलोचना करने का विचार है। परिशिष्ट में पुष्पदन्त के ग्रन्थों के वे सब अंश दे दिये गये हैं जो महत्वपूर्ण हैं और जिनके आधार से यह लेख लिखा गया है। अधिक प्रयोजनीय अंशों का अनुवाद भी टिप्पणी में दे दिया है। इस लेख के तैयार करने में श्रीमान् मुनिमहोदय जिनावजयजो से बहुत अधिक सहायता मिली है। इसको बहुत कुछ सामग्री भी उन्हीं की कृपा से प्राप्त हुई है, अतएव मैं उनका बहुत ही कृतज्ञ हूं। * नं. ११३९ आफ १८९१-९५ | ४ नं. १०५० आफ १८८७-९१ ।। * नं. ५६३ आफ १८७५-७६ x नं ११०६ आफ १८८४-८७ ।। नं. ११६३ आफ १८९१-९५। ११३५ आफ १८८४-८७।०देखो जैनमित्र, गुरुवार, आश्विन सुदी ५ वीर सं. २४४७ में श्रीयुत पं. पन्नालालजी वाकलीवाल का "सं. वि. १०८० के प्रभाचन्द्र" शीर्षक लेख । Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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