SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य संशोधक [खंड २ ष्ठितं ' थी 'संतानीय' सूधीनी बे लीटिओ मूकी दीधेली छे. आने लीधे तेम ज केटलाक खोटापाठोने लीधे तेमनी नकल उपरथी भाषांतर करवू केवळ अशक्य छे'. मूळ ले ख १. ओ० संवत् १२९६ वर्षे फाल्गुण वदि ५ रवी कीरप्रामे ब्रह्मक्षत्र गोत्रोत्पन्न व्यव० मानू पुत्राभ्यां व्य० दोल्हण आल्हणाभ्यां स्वकारित श्रीमन्महावीर देव चैत्ये।। २. श्रीमहावीर जिन सूल बिंबं आत्मनेयो [ ] कारितं । प्रतिष्ठितं च श्रीजिनवल्लभ सूरिसंतानीय रुद्रपल्लीय श्रीमदभयदेवसूरि शिष्यैः श्रीदेवभद्र सूरिभिः ॥ भाषांतर ॐ. (लौकिक) वर्ष १२९६ ना फाल्गुण वदि पंचमीने [ दिवसे–करिणाममा ब्रह्मक्षत्र ज्ञातिना व्यापारी मानूना बे पुत्रौ व्यापारी दोल्हण अने आल्हणे पोते बंधावेला श्रीमन्महावीर देवना मन्दिरमा श्री महावीर जिननी मुख्य प्रतिमा, पोताना कल्याणमाटे करावी. तेनी प्रतिष्ठा श्रीजिनवल्लभ सूरिना · संतानीय' रुद्रपल्लीय श्रीमत्सूरि अभयदेवना शिष्य श्रीसूरि देवभद्रे करी. १. जनरल कनिंगहाम करके शिववेद्यनाथना देवालयना इतिहास साथे भा लेखनो कोई संबंध नथी. पंक्ति १ली-ओंबांचव कीरनामे नार तथा प्रजोडेला छे ते भल छे ब्रह्म वाचवं मनी उपर एक भलथी करेल मात्र काढी नाखेल छे; कदाच 'मातृपत्राभ्यां खरोपाठ होय. कारण के त तपा न ओळखाय तेवा नथी. पण ते बराबर नथी; 'मान' शब्द ज बराबर छे. कारण के तेनी पहेलो व्य व्यवहारी शब्द पडेलो छ जे माताना. 'पाठमेत निरर्थक अने असंबद्ध थई जाय छे-संपादक.1 ..क्ति १ जी-श्रेयोथै नो ध जतो रह्यो छे; संतानीय नो ता स्पष्ट नथी. वर्षेनु भाषांतर लौकिक वर्षे कई, कारण के विक्रम संवत् पछी वर्षेने बदले घणीवार लौकिक वर्षे वापर वामां आवे छे. पबिम तथा उत्तर पश्चिम हिंदुस्थानमा विक्रम संवत्ना वर्षोंने लौकिक वर्षों कहे छे. अने शक संवत्ने शास्त्रीय वर्षों कहे छे. कारण के ते ज्योतिष विगेरे विषयोमा आवे .. लेखमा जे फागुण लख्युं छे ते अर्ध प्राकृत अने अर्ध संस्कृत रूप छे. मक बिंब शब्दने भाषांतर कर्या शिवाय जहुँ रहेवा दऊं छ. तेनो खासमर्थ शो छे तेनी खबर मथी. हं पार के बीजी नानी मोटी प्रतिमाओथी तेने खास मोळखावा माटे तेनु नाम भावु पाब्यु हशे. एनो अर्थ कदाव मुख्य प्रतिमा' थई शके. [एज अर्थ थाय छे..] १. प्रतिष्ठितं च ए पातना नियम प्रमाणे शुद्ध नथी. पण जैन पुस्तकोमा ए पो ठेकाणे जोवामा भावे छे. खरी रोते प्रतिपापित व मगर प्रतिहाता एपो पाठ जोईए. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy