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________________ १४२] जैन साहित्य संशोधक [खंड २ (टिप्पण) त्यारबाद गजनक (घिजनाना महमुदना) राज्यनी स्थापना थई. (एक गाथानो उल्लेख कर्यो छे.) पछीथी संवत् १३०० मां श्री वीरधवलनो भाई वीसलदेव राज्य गादी उपर आव्यो. १३१८ मां अर्जुनदेष. १३३१ मां सारंगदेव. १३३५ मां लघुकर्ण. १३६० मा माधव नामनो एक नागर ब्राह्मण यवनोने लाग्यो. कुमारपालना प्रधान नामे बाहडे, संवत १२११ मां [शत्रुजय उपर ] एक पत्थरनुं मंदिर वंधाववामां बे करोड ९७ लाख रूपीआ (रु २,९७,००,०००) खा. संवत १३७१ मां यवनो (मुसलमानो) तरफथी थएला त्रासने लइने, ज्यारे जावडिनी स्थापली मूर्ति नष्ट थई हती त्यारे समराके एक नवी मूर्ति स्थापित करी. [केटलोक खुलासो.] थेरावलीना प्रारंभमां आपेलां नामो तथा तारीखो घणांज महत्वनां छे. महावीर ए छेल्ला जैन तीर्थकर छे. बौद्धो गौतमने महावीर कहे छे. अने तेमना मुख्य अने प्रसिद्ध शिष्य तरीके महाकाश्यपर्नु नाम आपे छे. जैनो काश्यपने महावीर कहे छे अने गौतमने तेमनो मुख्य शिष्य (गणधर) बतावे छे. जैनो तथा बौद्धो बंने मगध अथवा बिहारनी राजधानी राजगृहना राजा श्रेणिक, जेने जैनो भंभासार कहे छे तथा बौद्धोना मतानुसार जे बिंबिसरो छे, तेने महावीरना मित्र तथा धर्मानुयायी तरीके एकमते जणावे छे. आ पुरुषो तथा त्यारपछीना राजाओना संबंधमां मारी समालोचना हुं बीजालेखमां करवा इच्छु छु. ते लेखमां हुं बुद्धनो काल तथा खिस्ति सन् पूर्वेनो हिंदुस्थाननो इतिहास, जेमना संबंधमां बौद्ध अने ब्राह्मणग्रंथोमांथी जडी आवती तारीखोथी जैन ग्रंथोमां आपेली तारीखो घणीज जुदी पडे छे, तेना विषयमा आलोचना करवा मारो इरादो छे. परिशिष्ट पर्वमां हेमाचार्य उदायीना खुनना विषयनी विगतो आपली छे. थेरावली प्रथम नंदनी उत्पत्तिना विषयमां एक संक्षिप्त अने अत्युपयोगी हकीकत आपे छे. अत्यारसुधीमां प्रकाशित थएला बौद्धग्रंथोमां ते विषयमा कांई लखेलुं जोवामां आवतुं नथी. पुराणोमां तेने शूद्रथी उत्पन्न थएल जणाव्यो छे. परंतु तेनी नापित (हजाम) कुलमां उत्पत्ति विषयक जे जैन हेवाल मळे छे ते हेवाल, अलेक्झान्डरे पंजाब उपर चढाई करी ते समये पाटलिपुत्रना राजाना डिओडोरस सिक्युलस ( Diodorus Siculus ) अने क्विन्टस कार्टअसे (Quintus Curtius ) आपला हेवाल साथे जो के तद्दन एकरूप नथी छतां घणो मळतो छ. आ राजा ते, चंद्रगुप्त अगर ग्रीकोना संकोटसनो पूर्वज हतो. प्राकृत ग्रंथोमां शको तेमज सिथिअनोने सग कहेला छे. विक्रमसंवत् अने विक्रमादित्ये करेलो शकराजाओनो पराजय आ बे बनावो समकालीन होय तेम जणाय छे. परंतु शकनृपकाल के जे शालिवाहननो युग ज छे ते शक लोकोए करेली मालवा अने दख्खण उपरनी जीतना समकालीन छे. शककाल अथवा शकोना युगने, भारतवर्षीय विद्वानो सुद्धांए केटलीक वस्त्रत पहली बाबत साथे अने केटलीक बखत बीजा बनाव साथे गोटाळो करी दीधो के, अने ते रीते तेमनी गणत्रीमा १३५ वर्षनी भूल थाय छे. भरुचनी एक प्राचीन जैन लाइनरनिा अवशिष्टोमांथी मळी आवेल एक पट्टावलीना छुटा Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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