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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय आटली हकीकतो उपरथी एटलो निर्णय थाय छे के वर्धमाननुं निर्धाण गौतमबुद्धनी पछीथी थयुं हतुं. परंतु विद्वानोनो एक एवो मजबुत पक्ष पण रहेलोछेजे आ विचारनी सख्त विरुद्ध के. उदाहरण तरीके मि. विन्सेन्ट ए.स्मथ,11 हजी पण मानछे के वर्धमान एबुद्धनीपहेलां केटलाक वर्षे थई गया हता. ते लखे छ के जैन यति (तीर्थकर) “संभवित रीते बिंबिसारना राज्यना अंतनी नजीकना कालमां निर्वाण पाम्या हता. " अने गौतम बुद्धनुं निर्वाण “ अजातशत्रुना प्रारंभना राज्यकालमां थयुं हतुं.” महावीरना निर्वाणना, परंपरागत चाली आवेला समयने माननाराओनो पण आवो ज मत छे. वास्तवमां, तेओ, जैन तीर्थकरना निर्वाणने, बुद्धना निर्वाण करतां पचासथी वधारे वर्षों पूर्वे मूके छे. आथी करीने आ विषयनी विगतवार तपाल करवानी जरूर छे. ___मि. स्मीथनो उपरोक्त मत दीर्घनिकाय ३, ११७ आदि, अने मज्झिम निकाय २, २४३ आदिने आधारे उत्पन्न थएलो छे. आ विषयमां, प्रथम तो आपणे ए ध्यानमा राखवू जोईए के . दी०नि० २, २७ आदि अने म०नि० १, ३७७ मां जैनधर्मनो उल्लेख" चातुर्याम" (चार व्रतो वाळा) धर्म तरीके करेलो छे. जैन आगमग्रंथोमां 12 पण ए उल्लेख मळी आधे छे अन ते धर्म वर्धमाननी पूर्वे २५० वर्षे थएला पार्श्वनाथनो हतो. परंतु ते धर्भ वर्धमान-जेमणे पार्श्वनाथनां आ चार व्रतोमां पांचमुं ब्रह्मचर्य- व्रत उमेरीने पांच व्रतो अमलमा मूल्यां-मूकाव्यां हतांतेमनो न हतो. बीजुं ए के बुद्ध अने बिंबिसार ए बनेनो परस्पर अनेक वखत मेळाप थयोहतो 13 अने आ विषयमां एक बौद्धसंप्रदाय 14 तो एटले सुधी कहे छे के बुद्ध अने बिंबिसार ए बन्ने एक ज दिवसे जन्म्या हता. आथी विरुद्ध जैनपरंपरानुं 15 एम कहेवं छेके वर्धमान अने अवन्तीपति चण्डप्रद्योत ए बने एक ज दिवसे स्वर्गे गया. भासकृत वासवदत्ता द्वारा आपणे जाणीए छीए के प्रद्योत खरेखर अजातशत्रुना स्वर्गवास पछी तथा उदयना पण देहांत थया बाद पोते हयाती धरावतो हतो. त्रीजी बाबत ए छे के बुद्ध अजातशत्रुना प्रारंभिक राज्यकालमां, पछी ते तेना ५ अथवा ८ मा वर्षमां होय, निर्वाण पाम्या हता ए वात सघळी बौद्धपरंपराओने संमत छे. परंतु जैनपरंपराओ तो एम जणावे के के वर्धमान कोसलना राजानी साथे अजातशत्रुना युद्ध थई गया पछी ओछामां ओछां १६ वर्ष तो हयाती धरावता हता. __ आ उपरांत आ बंने धर्मोना प्राचीन ग्रंथोना सामान्य अभ्यास द्वारा एटलं अनुमान स्पष्ट रीते नीकळी आवे छे के वर्धमान, बुद्धना समयमां नहि, परंतु तेमना केटलांएक वर्षों पछी जन्म्या हता. प्राचीन बौद्ध ग्रंथोमां 16 जैनोना भिन्न भिन्न संप्रदायोना उल्लेखा थपला छे जेवा के-पाचनाथ; वर्धमान अने पुराण काश्यप एमना अनुयायीओ. आ काळ तेमने विविध धार्मिक पंथो रचवानो हतो. तीर्थकर ए शब्द जेनो अर्थ बौद्धो" पाषंडीमतनो संस्थापक" एवो करे छे, ते शब्दनो जैन ग्रंथमां थएलो अर्थ “धर्मनो संस्थापक" छे. हवे तैर्थिक अगर तो पाषंडीमतोना खास खास संस्थापकोनो विचार करतां, जैनग्रंथोमां नोधाया प्रमाणे, गोसाल ए सौथी प्रधानपद भोगवे छे; परंतु बुध्दना विरोधी तरीके तेनुं 11. Early History of India, 3 rd., ed., p. 33 12. उदाहरण तरीके जुओ उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २३. 18. जुआ, से. बु. इ. पुस्तक ५० (इन्डेक्स् ) प्रमाणमाटे पा. ९९ 14. Rockhill, Life of the Buddha (Citing Dulva, XI), p. 16. 15. The Literary Remains of Dr. Bhau Daji, p. 130. 16, सरखावो-महावग्ग ८, ५,३; अंगुत्तरनिकाय ३, ३८३. Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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