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________________ १३०] जैन साहित्य संशोधक [ खंड २ नजीक आवेला कुण्डग्रामना एक सरदार-उमराव हता. यतिए एम कहेलुं छे के तेमनुं कुटुंब पुष्कळ समृद्धिवान हतुं. परंतु वर्धमानना कुटुंबना विषयमा आवं कोई खास कथन थएलुं नथी. अजातशत्रुना विषयमा बौद्धो करतां जैनो घणं वधारे जाणे छे. तेना राज्यकालना अंतिम समयमां तेनी राजधानी चंपा हती. अने त्यां ज ते मरी गयो हतो एम जाणवामां आव्युं छे. तेणे वर्धमाननी घणी वार मुलाकातो लीधी हती, अने तेनो पुत्र उदायी ते तो खरेखर एक चुस्त जैन हतो. उवासग-दसाओमां 6 गोसालनो मरण समय, कोसल साथे अजातशत्रुमा थएला युद्ध बाद बतावेलो छे, अने वर्धमाननुं निर्वाण गोसालना मरण पछी १६ वर्षे थयातुं जणावेलुं छे. जैन सूत्रामां 7 एम कहेलु छे के वर्धमाननो मामो चेटक, जे वखते अजातशअए चंपा नामनी पोतानी राजधानीमांथी वैशाली उपर हमलो को ते वखते, त्यांनो राजा हतो. आ उपरथी आपणे न्यायसर एटलु अनुमान करी शकीए छीए के ते राजाना भाणेज आ जैन यति, आ बनाव बाद घणा वर्ष सुधी विद्यमान रह्या हता. तेम ज एटलुं तो आ परथी स्पष्ट ज थाय छे के जैनो, अजातशत्रुना राज्यना प्रारंभिक वर्षोना करतां तेना अंतनां वर्षांनी घणी ज वधारे अने चोक्कस माहीति धरावे छे. उदय अने दर्शकना राज्योनं, आ बने धोनी नोंधोमां घj ज झां प्रतिबिंब नजरे पडे के. सर्व आटली वात तो कबुल राखे छे के अजातशत्रुनो उत्तराधिकारी उदय बन्यो हतो, अने आ वात पुराणोक्त हकीकतो द्वारा समार्थितन थती होवा छतां आपणे ठीक ठीक तेम मानी शकीए छीए. बौद्ध परंपराओनी अनुसार उदय ए अजातशत्रुनो, बिंबिसारनी हयातिमां सुद्धा एक मानीतो पुत्र हतो; तथा पोताना पितानो बुद्धनी साथे मेळाप थयो ते वखते, ए एक बुवान पाटवी कुंवर हतो. आधी अजातशत्रुना मरण समये उदय मध्यवयस्क होवो जोईए. परंतु पर्शक, मात्र भासना वासवदत्ता नाटकमांथी ज तेना विषयमा जे फक्त एक परंपरामळी भावे छे ते अनुसार, गादीए आव्यो ते समये घणो ज जुवान-नानी उमरनो हतो. आ रीते जोतां, पुराणोमां जणाव्या प्रमाणे अजातशत्रु अने उदयनी वच्चे दर्शक आव्यो हतो तेम मनाय नहि. संभवित छे के जे उदय राजानी गादीए ते आव्यो हतोते राजानो, ते एक पुत्र या तो नानो हे होई शके. बौद्धो उदय धिषे आथी वधारे काई जाणता नथी; परंतु जैन नोधोमा जणाव्या प्रमाणे, ते (उदय) जैन धर्मनो एक चुस्त अनुयायी हतो, 8 पोताना पितानो उत्तराधिकारी बन्यो हतो तेम ज पाटलिपुत्रनो 9 वसाधनार हतो. अने छेल्लु ए के तेनी कारकीर्दिनो टुंक समयमां ज तेना खूनने लईने अंत आव्यो हतो. दर्शकना विषयमां, सिलोनना बौद्धो फक्त एटलुंज जणावे छे के तेनुं नाम नागदसक हतुं. परंतु आ उपरांत तेओ कई जणावता नथी. दर्शकना राज्यना प्रारंभ कालमां चंडप्रद्योत विद्य. मान हतो.10 चण्ड तथा तेना पुत्र पालकने जैनपरपंराओमां जे महत्त्व आपवामां आव्युं छे ते उपरथी एम अनुमान न कळे छे के ते युगमां जैनधर्मनुं मुख्य स्थान अने केन्द्र मगध नहि परंतु उज्जैन हो. तेम ज वर्धमान अने चण्ड ए बने समकाले देहांत थया हता, ते वात जो सरी होय तो, आपणे मानी शकीए के जैनधर्मना संस्थापके दर्शकनुं राज्य जोयुं हशे. 4. हेमचन्द्र रचित स्थविरावली चरित, ६,२१. 5. औपपातिक सूत्र.पृ.३९. 6. हानलनी आवृत्ति. परिशिष्ट १. अने २. पृ. ११०. 7. निरयावली सूत्र, पृ. २७. 8. कल्पसूत्र, op. cit, p. 5. 9. हेमचन्द्र, op. cit.जेनी साथे पाटलीपुत्र वसाव्यानी बाबतमा वायुपुराण पण मळतुं छे. 10 भासकृत स्वप्नवासवदत्तम् (त्रिवेन्द्रम् सीरीझ) पृ. ४. Aho Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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