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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय [९९ उपर निर्दिष्ट करेली कालकनी वार्तामा ज गर्दभिल्ल अने शकोनो इतिहास आधे छे. महावीर पछी ४५३ मा वर्षमां एटले के इ. स. पूर्वे ७४ मां अगर विक्रमनी पहेला सत्तरमा वर्षे थपला राज्यारोहण वाळा गर्दभिल्लना समयमां हयाती धरावनार बीजा कालके विक्रम राजाना पहेलां सीधीयन राजाओने हिंदुस्थानमां चढाई करवा माटे बोलाव्या तेना विषेनी वातोने, खरेखर, काईक ऐतिहासिक प्रमाण होवू जोईए. बीजे स्थळे आ गर्दभि (ल) ने उजयिनीनो राजा तथा विक्रमादित्यनो21 पिता कहेलो छ; अने तेना विषे एम सूचित करवामां आव्युं छे के इ.स.४२०-४३८ मां थएलो अरबस्ताननो राजा बहराम गोर तेज आ हतो. बोजा वळी कहे छे के इ.स. पूर्वे पहेला सैकामां थएलो सत्रप गुडफर अगर गॉन्डोफेरस ते पण आजहतो; 22 परंतु गर्दभि(ल) विक्रमना समय साथे निकटनो संबंध धरावतो हतो, तेथी उपरोक्त बन्ने प्रमाणो निर्बल ठरे छे. वळी, गर्दभिल ए नाम पण एक विचित्र भारतीय जेवू लागे छ, 23 जनुकारण भाग्ये ज आपीशकाय; तेथा तनामनु मूळ परदेशीय हशे एम संभव एम पण शक्य लागे छ के गर्दभिल ए कि नाम छे अने तेथी ते नामनो माणस कोईक नानो ग्रीक राजा होवो जोईए जेने सीधीयन राजाओए हराव्यो हशे. पण तेने उज्जैनना ए नाममा प्रख्यात राजा साथे कांई संबंध न हतो. आ कामचलाउ तर्कनी विरुद्ध सबळ प्रमाण आपी शकाय तेम नथी, कारण के विष्णुपुराण प०४४, २४, १४ मां गर्दभिलोने एक जात तरीके गणी, आंध्र वंशथी उतरी आवेली यवन, शक, बाल्हीक विगेरे हिंदुस्थान उपर चढाई करनारी जातो साथे गणाधी छे; ए कारणे कदाच घणा जूना सैकाओमां थएला गर्दभिलमी साथे नैसर्गिक अगर कृत्रिम संबंधे तेना नाम उपरथी आ लोकोनुं नाम पडयुं हशे. गर्दभिल्लना विषयमां आटलं ज.पण शक के जेणे विक्रमादित्यथी हार्या पहेलां चार वर्ष सुधी राज्य कर्यु हतुं एम कहेलुं छे, तेना विषे घणो रस आपी शके एवी तथा ऐतिहासिक उपयोगिता वाळी केटलीक सूचनाओ कालकनी गुंचवणभरेली वार्तामां आवेली छे. ते वार्तामां कहेलं छे के गर्दभिल्लना उच्छेदनी प्रतिज्ञा लईने कालक केटलोक वखत भटक्यो अने शककूल देशमां (Z. D. M. G. 34,262) आव्यो; अने कालकाचार्यकथानक, श्लोक ६३ मां शकवंश विषे कहेलं छे केः सगकूलाओ जेणं समागमा तेण ते सगा जाया । 'शककूलमाथी उतरी आवेला होयाथी ते शक कहेवाया, वळी, एमां ज कहेलं छे के शककूलना प्रांतोना अधिकारीओने साहि कहेता. तथा ते देशना राजा 'राजसमूहना मुकूटमाणि' ने साहाणुसाहि कहेवाता. 'शककूल-शकस्थान' एम कहेतुं प्रो. जेकोबीनुं सत्य हतुं; 24 तथा स्ट्रेबो, ११, ८, २,25 मां आवुलं नाम जे संस्कृत शब्द शककूलना जेवू ज छे ते पण तेमणे री आप्यु छ; अने एटलं तो निःसंदेह छे के ते उपरथी ज जरा फेरफार करी पाडेलुं छे. तेथी कालक विषेनी वार्तानो तथा तेणे करावेली सीधीयनोनी चढाईनो काईक ऐतिहासिक 21. विष्णुपुराण ( विल्सन ), ५, ३९२; सरखावो वेबर इन्डि० स्टुडी० पु. १५, पा. २५२ 22. प्रथम सूचना As. Res. IX, 147 मां विल्फर्ड करेली, अने बीजी इन्डि एन्टी० २, १४२ मां प्रीन्सेपे करेली, तथा तेने Ind. Act. II,409 मां लॅसेने अनुमोदन आप्यु छे. 23. मारा धारवा प्रमाणे जूना नाम गोभिल साथे, तथा मृच्छकटिकमांना तद्दन अस्मृत रोभल नाम साथेज सरखावी शकाय. सरखावोः Indog. Forsch, 28, 178; 29, 380 sqr. 24. पा. २५५. 25.( आ ठेकाणे लेखके ग्रीक अवतरण आपेलुं छे जे अहीं छापी शकाय तेम नथी-संपादक) Aho I Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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