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________________ ।। ॐ अर्हम् ।। ॥ नमोऽस्तु श्रमणाय भगवते महावीराय ॥ जैन साहित्य संशोधक 'पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि । सच्चस्साणाए उबट्टिए मेहावी मारं तरइ ।' जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ।' दि, सुयं, मयं, विण्णायं, जं एत्थ परिकहिज्जइ । ' 6 खंड २ ] - निर्ग्रन्थप्रवचन - आचारांगसूत्र । [ अंक २ श्री महावीर - निर्वाण समय-निर्णय [ इन्डियन एन्टीक्केरी, भाग ४३ मां, प्रकाशित, जार्ल चार्पेन्टीअर, पीएच्. डी.; उप्सला; ना इंग्रेजी लेखनो अविकल अनुवाद ] 'केम्ब्रीज हिस्टरी ऑफ इंडिआ ' पु. १ मां जैनोना इतिहास विषेनुं प्रकरण लखती वखते महावीरनो खरेखरो समय नक्की करवानी मने खास जरुर पडी हती; परंतु आ महत्त्वना प्रश्न उपरना अनेक प्रमाणोनो ऊहापोह करवानो तेमां पूर्ण अवकाश नहि मळवाथी, प्रचलित जैन धर्मना संस्थापकना समय विषे में जे अभिप्राय बांध्यो छे तेना मूलभूत तत्तत् विचाराने अहीं दर्शाववानुं मने अनुकूळ लाग्युं छे. वळी, प्रो. जेकोबीए जैनधर्मना अभ्यासमां अगत्यनां पुस्तको कल्पसूत्र तथा सैक्रेड बुक्स ऑफ धी ईस्ट, पु. २२ - नी प्रस्तावनामां महावरना समय माटे 1 सबळ प्रमाणोथी, पण संक्षेपमां, जे संकुचित अवधी बांधी त्यारपछी आ विषय उपर कोई पण पूरेपूरी चर्चा करवामां आवी नथी; तेथी ए विषयने अहीं फरीथी उपाsat अस्थाने नहि गणाय. प्रो. जेकोबी पासे जे प्रमाणो हतां लगभग तेवां ज प्रमाणो मारी पासे छे, तेथी मारा आ लेखमां घणे भागे तेमना कथननुं पुनरालेखन थशे अने पछी तेमनो Aho ! Shrutgyanam 1. महावीरना समय विषे मारी पहेलांना विद्वानाना अभिप्रायो माटे जुओ-राइस, इंडि० एन्टी० पु. ३ पा. १५७, इ. थॉमस, पु. ८, पा. ३०६ पाठक पु. १२, पा. २१. प्रोफेसर जॅकोबना लेखथी आ बधा लेखो रद थया छे तेथी मारा लेखमां ए जूना लेखको विषे हुं उल्लेख करवानो नधी.
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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