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________________ २०६ जैन साहित्य संशोधक इतिहासनी महात्तामा पण एक विशेष उमेरो थयो छ. ए निबंधमां पण तेमगे महावीर-निर्वाण संबंधी सूचन कयु छे अने पोताना उपर्युक्त काळनिर्णयवाळा लेखमां करेला कथनने वधारे पुष्ट बनाव्यु छे. तेमनी आ बधी दलीलो पुरातत्वज्ञो मान्य करता जाय छे अने अर्लि हिस्टरी ओफ इन्डि आना लेखक प्रसिद्ध इतिहासज्ञ नि. वीन्सेंट स्माथेषण हवे तमना कथनने सादर स्वीकार्यु छे, एम श्रीयुत जायसवाल मने पोताना तारीख ९।७।१८ ना पत्रमां, खास रीते नीचे प्रमाणे जणावे छ.. ___" आप को यह सुन कर प्रसन्नता होगी कि V. Srnith ने यह अब मान लिया कि बुद्धदेव तथा महाबीरस्वामी का निर्वाण-काल जैसा हम कहते हैं वहीं ठीक है। अर्थान् जैसा कि उन के अनुयायी मानते हैं । यह खारवेल के लेख से सिद्ध हो गया । भि. विसेंट स्मीथने पत्रद्वारा यह मुझे लिखा है ।" आवी रीत भारतीय इतिहासना एक घणा ज महत्वना प्रश्ननो घणा युगानी घडपथल पछी एक भारतीय विद्वानना हाथे ज निर्णय थतो जोई दरेक भारतीयने प्रसन्न थवा जे छ, अनेसास करीने जैन समाजे तो पोताना कृतज्ञता प्रकट करवा माटे श्रीयुत जायसवालने हार्दिक अभिनंदन आप, जोईए. कालगणना विषयमा हमेशां कृपणता बतावनारा पाश्च त्य पुरातत्वज्ञोए महावीर-निर्वागने ६० वर्ष आ तरफ खेंचीने पुगणा जैन ग्रंथोमा आपेली प्राचीन गाथा आने असय रवा हती, परतु श्रीयुत जायसवाल ए ग्रंथकारांना पक्षमा वगर फीए बेरीस्टरी करवा तैयार थया अने अनाथ अने मूक एवा ए जीर्ण ग्रंथोना कथनने पोताना प्रतिभाबळे सत्य ठरावी विचारक जगत् आगळ तेमनी प्रतिष्ठाने पूर्ववत् स्थिर करी आप। छे. श्रीयुत जायसवालना मत प्रमाणे महावीर स्वामी, निर्वाण वि. सं. पूर्वे ४७० वर्षे नहीं परंतु ४८८ वर्षे थयं हतु. कारण के पट्टावलिओ विगरेमा जे ४७० वर्ष लख्या छे ते विक्रमना राज्यारोहण सुधीनां नथी; परंतु जन्म सुधीना छे. विक्रम पोत ना जन्मथी १८ मे वर्षे गादिए बेठो हतो, अने त्यारथी तेनो संवत् चाल्यो छे, तेथी विक्रम सं. नी शरूआत पहेला ४८८ वर्ष उपर महावीर-निर्वाण थयु हतुं ए सिद्ध थाय छे. आ गणत्री प्रमाणे आजे जे आपणे महावीर-निर्वाण संवत् २४४८ मानीए छीए तेना बदले २४६६ (२४४८+१८) मानव जोईए. केटलीक जूनी पट्टावलिओमाथी पण आ कथनने पुरावो मळे छ श्रीयुत जायप्तवाले आ संबंधमां छूटा छवाया वणा उल्लेखो कर्या छे, परंतु सबळा पुरावाओनो संक्षेपमा एकत्र संग्रह अने तेना उपरथी निकळतो सार; तेमणे उपर जणाव्या प्रमाणे बीहार अन ओरीसा रीसर्च सोसायटीना जर्नलना प्रथम भागना प्रथम अंकमां ( The Journal of the Bihar and Orissy, Restareh Society. Vol, I. Part 1.) शैशुनाक अने मौर्यकालगणना तथा बुद्धनिर्वाणनी तारीख (Saisunaka land Maurya Chronology and the Date of the Buddha's Nirvants) नामना लेखनी अंत, खास महावीरनिर्वाण अने जैन कालगणना संबंधी एक स्वतंत्र प्रकरण उमेरीने तेमां आप्यो छे. जैन ग्रंथोमां वारंवार मळी आवता श्रेणिकादि शिशुनागवंशीय अने चन्द्रगुतादि मौर्यवंशीय राजाओना वास्तविक राज्यकाल जाणवानी जिज्ञासावाला दरेक जैन विद्वाने ए समग्र निबधं खास मननपूर्वक वांचवो जोईए. जिज्ञासु वांचकोनी खातर तेम ज विद्वान् मनाता जैन मुनिवरोना ज्ञाननी खातर, ए लेखमांनो अंतिम भाग जे महावीर-निर्वाण संबंधी लखाएलो छे तेनो अनुवाद अत्र आस्वामां आवे छे. जैन विद्वानो तरफथी आविषयमा अधारे ऊहापोह थवानी आशा तो राखी शकाय तेम छ ज नहीं परंतु जो तेओ एकवार भननपूर्वक आ वधुं समग्र वांची जवा जेदली पण प्रवृत्ति करशे तो आ प्रयत्न माटे लेवायलो श्रम आशा आपनार निवडशे. तथास्तु.] Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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