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________________ अंक ४] हिंसा अने वनस्पति आहार " त्रस एटले चाली शके एवां प्राणिओने अभय दान मन्तव्यनी प्रथम स्थापना जैनो अथवा कोई अन्य धर्मानुआपवामा तत्पर रहेनार सत्पुरुषोए प्रमादक पान, मांस, यायी ओ तरफथी करवामां आवी हशे. आ कल्पनाथी मद्य अने रसवाला वृक्षोना फलोनो हमेशां त्याग करवो आपणे वैदिक युगनी समाप्ति सुधी पाछळ जईए छोए, जोईए. ___ अने अहिं छान्दोग्य उपनिषद्ना अन्तिम भागमां आपणे " जेमा सूक्ष्म जंतुओनो नाश थाय छे अने अभक्ष्य इच्छेलं अहिंसा व्रतनुं प्रथम पगथियुं आपणने मळी वस्तुओ खवाय छे तेवु रात्री भोजन, दयालु सजनो कदी आवे छे.-जो के देखीती रोते ते मूळनी शरुआतनुं तो करता नथी. नथी ज. छान्दोग्य उपनिषद्नो ते भाग नीचे प्रमाणे छे" जेओ स्थावर प्राणिओनो नाश करीने अन्नाहारी “ आचार्यना घरे यथाविहित समयमां, यथा विधि, तरीके रहे छे अने जेओ त्रस प्राणिओनो नाश करीने वेदनो अभ्यास करीने जे गुरुना घेरथी पाछो आव छ, मांसाहारी तरीके जीवे छे, ते बनेना पापर्नु अन्तर. तेणे पोतानी मेळे पोताने घरे पवित्र स्थानमां, ते पवित्र सत्पुरुष जणावे छे के, परमाणुं अने मेरुना जेटलुं ग्रंथोनो अभ्यास करवा; सत्यशील शिष्योने भणाववा; होय छे. - पोतानी सकल शक्तिओनुं स्थान आत्माने बनाववो; ___ " अन्नाहारमा जे परमाणु जेलु पाप छे तेनो नाश पवित्र तीर्थो सिवाय अन्यत्र कोई पण प्राणीनी हिंसा प्रायश्चित्त मात्रथी करी शकाय छे, परन्तु मांसाहरमा करवी नहीं; ते खरेखर आ प्रमाणे यावज्जीवन रही ब्रह्मपाप पर्वतराज जेवू मोटुं छे अने तेथी तेनो नाश करी लोक मेळवे छ; अने पुनः आवतो नथी.-पुनः शंकातो नथी." आवतो नथी." ___ मध, रेशम अने ऊन विगेरेनी उत्पत्तिमां बने छ एनो अर्थ ए के-जे मोक्षनी आकांक्षा राखे छे ते तेम प्राणिओनी संपत्ति खूचवी लेवानी यति अने उपा- यज्ञ सिवाय अन्यत्र पशुवध करी शके नहीं. ए ध्यानमा सक बन्नेने मना करवामां आवी छे. मध खावामां चोरी राखg जोईए के अहिं गृहस्थने उद्देशीने आ अहिंसाना अने हिंसा बन्ने रह्या छे. हिंसा एटला माटे के "मधर्नु नियमनुं वर्णन थाय छे. केम के घणुं करीने ते समये, दरेक बिन्दु असंख्य मक्षिकाओना वधथी ज प्राप्त थाय वैदिक युगना अन्तमा पण, 'सन्नथास' नो प्रारंभ थयो छ." "जेटलुं पाप सात गामोंने बाळी नांखवाथी न हतो. थाय छे तेटलुं पाप मधनु एक टीपुं खावाथी थाय परन्तु त्यार पछीना उपनिषदोमा चतुर्थाश्रम पूर्ण छ." ज्यां हजारो ढोरो भूखे मरे छे एवा हिन्द देशमा विकास पामेलो जोवामां आवे छे, अने तेने माटे आपेला उपरना विचार साथ आश्चर्यजनक विरोध धरावनार वात नियमो जैन यतिना नियमोने केटलेक अंशे मळता आवे तो ए छे के पाणि ओतुं दूध पीवामा पाप बिलकुल गण- छे. जैन यतिनी जेम, ब्राम्हण संन्यासीने पण वर्षाऋतुमां वामां आव्यु ज नथी! फरवार्नु बंध राखवू पडे छे, अने पाणी पीधा पहेलां अहिंसानो आवो उत्कट मार्ग अनुक्रम वगर एकदम उ- गाळवं पडे छे. अने स्पष्ट पणे ज-जो के चोक्स नथी त्पन्न थाय ए भाग्ये ज मानी शकाय तेवु छे, तेथी; तेम छतां ते मांसाहार करी शकतो नहीं. गमे तेम हो ज महावीर अने पार्श्वनाथ पण आमांना घणा नियमो उपर परन्तु आटलं तो चोकस छे के ब्राम्हण धर्ममा भार मूकता हता तेथी; आपणे एवी कल्पना तरफ दोराईए पण घणा लांबा समय पछी सन्नथासिओ माटे छीए के बुद्धनी पूर्वे बे शतक के तेथी पण पहेला आ सूक्ष्मतर अहिंसा विहित थई; अने आखरे वनस्पति (एटले क्राईस्टनी पूर्वे ८०० वर्ष पहेला ) हाल जेने आहारना रूपमां ब्राह्मण ज्ञातिमां पण ते दाखल थई हतो. अहिंसान 'अणुव्रत' कहेवामां आवे छे तेना जेवा एक कारण ए के के जैनोना धर्मतत्त्वोए जे लोकमत जीत्यो Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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