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________________ १८६ जैन साहित्य संशोधक [खंड अहिंसा अने वनस्पति आहार-खास करीने बौद्ध धर्ममां [बुद्धिस रिव्युना, पुस्तक ६, अंक १ मां प्रकट थएला डॉ. F.OTO SCHRADER, PH. D. ना लेखनो अनुवाद.] अहिंसा-एटले जीवित प्राणिओने कोई पण प्रकारनी अहिंसाने उद्देशीने जैनोनुं दृष्टिबिन्दु आ प्रमाणे इजा करवामांथी अलग रहेवानु-व्रत हिंदुस्तानना आर्यो- बताव्युं छे:------ मां ज जन्म पाम्युं हतुं. याहुदी-ख्रिस्ती संस्कारोथी ए "कोईए पण जीवता प्राणिओनी हिंसामा अनुमति व्रत केटलुं बधुं विदेशीय छ, ए वात नीचेना विरोध- आपवी नहीं; तेम करवाथी मनुष्य सर्व दुःखदर्शक दृष्टान्तोथी जणाई आवे छे.' ज्यारे क्राईस्ट पिटरने माथी मुक्त थशे; जे आचार्योए यतिधर्म कह्यो छे तेमळ्या त्यारे पिटरे पोतानुं माछलीओ पकडवानुं काम ओए ए प्रमाणे आज्ञा करी छे. शरु कयु हतुं. पिटरे जलमां नाखेली जाने क्राईस्टे " जे ज्ञानी पुरुष जीवता प्राणिओने इजा करतो नथी एटला बधा आशीर्वादो आप्या के जेथी पकडाएली ते समित (चारे बाजुए जोनारो ) कहेवाय छे. जेम माछलीओना मोटा समूहने लीधे होडीओ डुबी जवाना जल उच्च प्रदेशनो त्याग करे छे तेम पापकर्म ते पुरुषने मयमा आवी पडी. एबी उलटं, पाणामा नांखेली त्यजी देशे. पोतानी जाळोने बहार खेंची काढवानी तैयारी करता “ जंगम अथवा स्थावर जे प्राणिओ जगत्मां रहेला केटलाक माछीमारो ज्यारे पायथागोरसनी दृष्टिए पड्या छे तेमने हानी थाय तेवु कांई पण कर्म मनथी, वचनत्यारे तेणे ते माछीमारो पाथी जाळग्रस्त बधी माछ- थी के कायाथी मनुष्ये करवू नहीं." लीओ पेचाती लई लीधी अने पछी ते बधी माछलीओ “(मनुष्यो सहित') प्राणि ओ, अग्नि अने पवन ए तेम ज ते जालमा पकडाएल बीजा प्राणिमोने त्रस-चाली शके तेवा प्राणिओ छे; पृथ्वी, पाणी, अने पण तेणे मुक्त की. जो के अत्यारे आर्य ओलादनो वनस्पति ए स्थावर-न चाली शके एवा प्राणी छे." दरेक पश्चिमवासी पोताना पौर्वात्य बन्धु जेटलो ज अ- आचारांगसूत्र नामना एक बीजा प्राचीन अने आहिंसात्तनो पक्षपाती होय छे. छतां हजुए पश्चिममां गम. ग्रंथमां आ बधानो यथाक्रमे संक्षेपमां नीचे सामान्यरीते बन्धनकारक नियम तरीके तो अहिंसाव्रत- प्रमाणे समावेश करवामां आव्यो छे.' नो स्वीकार घणो ज अस्प छे. " ते पाप कर्मने जाणीने ज्ञानी पुरुषे पृथ्वी ( जल __ अहिंसाने धार्मिक तत्त्ववें स्थान क्यारे मळ्यं ए तेज विगेरे ) प्रत्ये हिंसक रीते वर्तवू नहीं, बीजाने ते कहेवं मुश्केल छे; परन्तु अत्यारे अस्तित्व धरावता ध प्रमाणे वर्तवा प्रेरवु नहीं, तेम ज जेओ ते प्रमाणे वर्तता होय तेमने प्रशंसवा नहीं." मोमां जैनधर्म एक एवो धर्म छे के जेमां ___जैन धर्ममा अहिंसाना विचार संबंधी जे उत्कटता छ आहिंसानो क्रम सम्पूर्ण छे अने जे शक्य तेटली तेनो आथी ख्याल आवे छे. जो के आ नियमो मात्र दृढताथी सदा तेने वळगी रह्यो छे. यतिओ माटे छे छतां हाली चाली शकतां प्राणिओनो उत्तराध्ययन सूत्र नामक जैनोना एक आगम ग्रंथमां वध न करवानुं अहिंसाणुव्रत-अहिंसा संबंधी नानो निय - म-तो यति न होय तेने पण दृढताथी पाळवो पडे * ब्लॅक टाईप अमे मुक्या छे.-संपादक जै. सा. सं. छ: Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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