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________________ ૨૬૮ जैन साहित्य संशोधक [खंड आप्यां छे. प्रो. वेबरे पोते तैयार करेला बर्लिनना हस्तलेखोना माना घणाक महत्त्वना शिलालेखो बहार पाड्या छे विस्तृत सूचिषत्रमा संपूर्ण जैन साहित्यनु साधारण अवलोकन एम्. ए. बार्थे जैनधर्म विषयक आपणा ज्ञाननी समालोकयु छे. तेम ज तेमणे जैन सूत्रो उपर एक अति विद्वत्ता- चना करी छे". बुल्हरे पण एक मानो निबंध लखी तेवी पूर्ण मोटो निबंध पण प्रकट कर्यो छे. प्रो. ल्युमने आलोचना प्रकट करी छे", अने छेवटे भांडारकरे संपूर्ण वळी जैन वाङ्मय अने शास्त्रना विकासनुं सारु अध्ययन जैन धर्मनी एक महत्त्वनी अने घणी उपयोगी रूपरेखा कर्य छ, तथा केटलीक जैन कथाओ अने तेना आलेखी प्रसिद्धिमां मुकी छे". आ रीते, आपणा जैन ब्राह्मण अने बौद्ध कथाओ साथेना संबंधनी तपासणी धर्म विषयक ज्ञानमा थएला वधाराआए (जेमांना पण करी छे. श्वेताम्बर संप्रदायना जुना इतिहासनी मा- मात्न खास नोंधवा लायक ग्रंथोनो ज में अहिं उल्लेख को हिती आपनारो एक महत्त्वानो ग्रंथ में पण संपादित छे) आ आखा विषय उपर एटलुं बंधु अजवाळु पाड्यु कों छे", तथा तेमना केटलाक गच्छोनो इतिहास होर्नल' दोलन छे के जेथी हवे मात्र कल्पनाने आ विषयमां घणो ज थोडो अने क्लाट द्वारा जाहिरमां आव्यो छ. आमांनो छेलो अवकाश रहेशे. अने ऐतिहासिक तेम ज भाषाविज्ञानात्मक विद्वान (लाट ) जे अत्यारे आपणी वच्चे मौजद नथी. साची पद्धति, ते साहित्यना सघळा भागोने लागु पाडी तेणे सघळा जैन लेखको अने ऐतिहासिक पुरुषोनो एक शकाशे. तेम छतां, हजी केटलाक मुख्य प्रश्नोना खुलासा जीवन चरित्रात्मक महान् नामकोष (Onomasticon) करवा बाकी रह्या छ, तथा जे निराकरणो आ अगाउ थई तैयार कर्यो छे अने जेना केटलाक नमुना प्रकट पण थया गयां छे ते हजी बधा विद्वानोने मान्य थयां नथीः तेथी छे. होफ्रेट बुल्हरे सर्वविद्याविशारद एवा प्रसिद्ध वि. आ सुअवसरनो लाभ लई आनंद पूर्वक हुँ अहिं केटद्वान् हेमचंद्रनुं विस्तृत जीवन चरित्र लख्युं छे. वळी । लाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा इच्छु छु. तेमणे घणाक जुना शिलालेखोना अर्थो पण प्रसिद्ध कर्या आ मुद्दाओना खुलासाओ माटे आज पुस्तकमां भाषान्तछे. डॉ. फुहररे मथुरामांथी खोदी काढेला कोतर कामोनुं रित एथला सूत्रोमांथी घणी किंमती सहायता मळी शके तेम छे. विवेचन कयु छे, अने मि. लेवीस राइसे श्रवण बेल्गोल ___ ए बाबत तो हवे सर्व सम्मत थई चुकी छे के नातपुत्त ३ बर्लिन १८८८ अने १८९२. ( ज्ञातपुत्र ) जे साधारण रीते महावीर अथवा वर्धमानना - ४. Indische Studien पु. १६, पृ. २११ आदि. इ. नामे ओळखाय छे ते बुद्धना समकालीन हता. निगण्ठो ए. मां अनुवाद तथा जुदा पुस्तक रुपे, मुंबई १८९३. (निर्ग्रन्थो)३ जे हालमां जैन अथवा आहेतना नाम५. Actes du VI Congres International des Orientalistes, section Arienne पृ. ४५९ ९. बेंगलोर १८८९. astr Wiener Zeitschrift fur die Kunde des 90. The Religions of India. Balletin Morcenlandes पु. ५ अने ६. वळी,जर्नल आफ दी जर्भन des Riligions de l'ande, 1889-94 ओरिएन्टल सोसायटी, पु. ४८. 99. Uber die Indische Secte der ६. हेमचंद्राचार्य रचित परिशिष्ट पर्व, कलकत्ता. Jaina, Wien 1881. ७ Denkschriften der philos-histor. १२. रीपोर्ट सन १८८३-८४. Classe der Kaiserl. Akademie der १३. निगण्ठ ए स्पष्टरूपे मूळ रूप ज होय एम जणाय छे. Weissens chaften, Vol. XXXVII, p.171ff कारण के अशोकना शिलालेखोमां, पालीमां, अने केटलीक बखते जैन ग्रन्थोमां पण एज रूप मळी आवे छे. पण आ त्रणे बोली6. Wiener Zeitschrift fur die Kunde ओना स्वरशास्त्रना नियमो प्रमाणे तो लेनु वधारे वास्तविक रूप des Morgenlaudes, Vols. II and III. 'निग्गन्थ एवं थQ जोईए. अने आबु रूप जैन ग्रंथामा स्वीकाEpigraphia Indical, Vols. I and II. Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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