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________________ अंक ४ . १६७ डॉ. हर्मन जैकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना __ डॉ हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना ( भाग बीजो) [ अनुवादकः-श्रीयुत अंबालाल चतुरमाई शाह बी. ए. जैन साहित्य संशोधक कार्यालय ] [प्रथम अंकमां डॉ. हर्मन जेकोबीनी कल्पसूत्र ( मूल विचारथी में आ प्रस्तावनाओ साथ कोई पण प्रकारनी आवृत्ति)नी प्रस्तावना आपवामां आवी हती अने बीजा टीका-टिप्पणी लखी नथी के जेम करवामाटे मने घणाक अने त्रीजा अंकमा, 'सेकेड बुकस् आफ धी ईष्ट' ना- सज्जनो तरफथी सूचनाओ सुधां मळी हती. मनी प्रख्यात ग्रंथमाळाना २२ मां पुस्तकमां प्रसिद्ध थएला जैनसूत्रोना प्रथम भागनी प्रस्तावना प्रसिद्ध करवामा " आ अनुवादो में मारी जातीय देखरेख नीचे कराव्या आवी छे. आ अंकमां ए ज जैन सूत्रोना बीजा भागती छ अने पाछळ्थी घणी काळजी अने महेनत पूर्वक मळ (जे उक्त ग्रंथमाळाना ४५ मा पुस्तकरूपे बहार पटेल साथे संपूर्ण सरखाव्या छे. छतां जो कोई सज्जनने आमा छे ) प्रस्तावना आपीए छीए. आ भागमां, सुत्रकतांग क्याए स्खलन विगेरे जणाय तो ते खास लखी अने उत्तराध्ययन एम बे सूत्रोनुं इंग्रेजी भाषान्तर आपे- जणाववा सूचना छे जेथी तेनुं संशोधन करी देवांमां लूं छे. डा. जेकोबीनी आ त्रणे प्रस्तावनाओए यरोपीय आवे.-संपादक. ] विद्वानोना जैनधर्मविषयक जुना विचारोमा घणुं संशोधन जैनसूत्रोना मारा भाषान्तरना प्रथम भागने प्रकट थए कर्य छे अने सर्व साधारणमां जैन संबंधी व्याघेला अज्ञानने दश वर्ष थयां. ते दरम्यान केरलाक उत्तम विद्वानोद्वारा घणे अंशे दूर कयु छे. इंग्रेजी केळवणी पामेली आलमने जैनधर्म अने देना इतिहासविषयक आपणा ज्ञाना जैनधर्मनुं जे काई थोडं घणुं खरं ज्ञान मळ्यु होय तो घणो अने महत्त्वनो वधारो थयो छे. हिंदुस्तानना विद्वा. तेनो बधो यश डॉ. जेकोबीनी आ महत्त्वनी प्रस्तावना- नोए संस्कृत अने गुजरातीमां लखेली सारी टीकाओ ओने घटे छे. बौद्ध धर्मथी जैनधर्म तद्दन स्वतंत्र अने साथे सूत्र ग्रंथोनी साधारण आवृत्तिओ बहार पाडी छे. तेना करता जुनों छे ए सिद्धान्त डॉ. जेकोबीए ज सौथी प्रो. ल्युमन' अने प्रो. होर्नले आ सूत्र ग्रंथोमांना बे लूप्रथम अने सचोट रीते स्थापित कर्यो छे. जैनधर्मना सा- त्रोनी गुण-दोषमा विवेचनबाली भावृत्तिओ पण प्रकट करी मान्य स्वरूपने समजवा माटे आत्रणे प्रस्तावनाओ विद्वा- छ; अने तेमांए प्रो. होर्नले तो पोतानी आवृत्ति साथे मूळनुं नोमां खास प्रमाणभूत मनाय छे. काळजीपूर्वक करेलु भाषान्तर अने पुरता उदाहरणो पण आ साथे एक आटली सूचना करी लेवानुं हुं उचित । १ दस्, औपपातिक सूत्र, Abhandlungen fur die समजुं हुं के आ प्रस्तावनाओमांना बधा विचारो मने kunde des Morgeniondes नामनी ग्रंथमाछा, पुसम्मत छे एम कोईए समजी लेवानी भूल न करवी जो- स्तक ८, दशवकालिक मूत्र अने नियुक्ति, जर्नल आफ धी ओ रिएन्टल सोसायटी, पु. ४५. ईए. आमांना केटलाए विचारो साथ मारो मतभेद छे के २ उवासग दसाओ (बिब्लिओथिका इन्डिका ) भाग १ मूळ जे हुँ भविष्यमा सविस्तर प्रकट करवा इच्छु छु, अने एज भने टीका, कलकत्ता १८९०, भाग २, इंग्रेजी भाषान्तर, १८८८. Aho I Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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