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________________ जैन साहित्य संशोधक १५८ दृष्टिए मल्लवादीनी ए टीकानुं घणुं ज महत्त्व होई शके छे. कारण के तेना आधारे न्याय शास्त्रना विकास अने इतिहास संबंधी अनेक प्रश्नोनो विशिष्ट ऊहापोह करी शकाय छे; अने ते उपरथी अनेक अज्ञात बाबतोनुं ज्ञापन अने संदिग्ध वातोनुं निराकरण करी शकाय छे. तेथी सम्मतिनी ए टीकानी शोधखोळ करवा माटे दरेक विद्वानने आग्रहपूर्वक भळामण करवामां आवे छे. " सम्मतिनी एक त्रीजी ठीकानी पण एमां नोध करेली छे. तेनो कर्ता कोण छे ते एमां जणाव्यं नथी. फक्त अन्य कर्तृक' छे, एम जणावी छे. कदाच ए टीका कोई दिगंबर विद्वान् कृत होय, जेना संबंधमां हती. बंने प्रतो वडो दराना जैन ज्ञानमंदिर वाळा प्र. अमारा विद्वान् मित्र श्रीयुत नाथू रामजी प्रेमीए जैनहितै- श्री कांतिविजयजीना शास्त्र संग्रहमांनी हती. ' [ खंड ४ बीना सन् १९२१ ना जान्युआरी-फेब्रुआरी मासना संयुक्त अंकमां एक महत्त्वनी टिप्पणी प्रकाशित करी छे. तो शोधक जनोए ए टीकानी पण गवेषणा करवी आवश्यक छे. आवी ज रीते बीजा पण अनेक ग्रंथोनां नामो जोवामां आवे छे के जे ए सूचिमां नोधायला छे पण अत्यारे उपलब्ध थता नथी. F [ नोट:-- :--आ नोटनी नीचे आपेलो पत्र मने एक जूना भंडारमां पडेला रद्दी कागळोना ढगलामांथी मळ्यो छे. कोई कोई वार रद्दी कागळोमांथी बहु महत्त्वनी चीजो मळी जाय छे के जेने साधारण मनुष्य नकामी गणीने कचराम फेंकी दे छे. आ पत्र विक्रम संवत् १८३१ मां लखायलो छे. ते मेवाड राज्यना प्रसिद्ध देवस्थान नाथदुआरा ' थी तपागच्छना यति ऋषभविजयजीए पोताना कोई वृद्ध अने पूज्य यतिना उपर लखेलो छे. तेमनुं नाम पत्रनीकिनारी फाटी जवाथी जतुं रहयुं छे. पत्रनी भाषा राजपूतानी - मुख्यत्वेकरी मेवाडी छे. आ पत्रमां ए समयनी राजपुतानानी राजकीय परिस्थितीनो बहु सारो अने मजेदार चितार आपेलो छे. ए जुना वखतमां ज्यारे रेलवे, टपाल, तेमज समाचारपत्र विगेरे साधनो न होतां त्यारे लोकोने एक बीजा प्रांतमां किंवा राज्यमां शीशी हील चालो थई रही छे ए बहु ओछु जाणवामां आवतुं हतुं. ए जमानामां सर्वसाधारण लोकोना आ सूचि बे हस्तलिखित प्रतो उपरथी मुद्रित करवामां आवी छे जेमांनी एक प्रत तो लगभग ४०० वर्ष जेटली जुनी हती अने एक नवी लखाएली ३०० एक ऐतिहासिक पत्र करतां यति, संन्यासी, बनजारा अने बाजीगर आदि जे मनुष्य हमेशां देशाटण अथवा परिभ्रमण करता रहेता तेओ ज राष्ट्रीय तेम ज सामाजिक परिस्थितिथी विशेष वाकेफ रहेता. ए बीना आ कागळ उपरथी स्पष्ट थाय छे. राज्यक्रान्तिना वखतमां लोकोने केवा केवा संकटो भोगववा पढे छे, एनो पण ख्याल आ कागळ उपरथी थई शके छे. संसारनो संसर्ग तजीने यति-संन्यासी थयेला मनुष्योने पण देशनी अस्वस्थताने लीधे के अस्वस्थ थई जवुं पडे छे ए बाब - तनुं पण स्पष्ट अने अनुभूत वर्णन आ पत्रमा छे. संवत् १८३१ मा राजपूतानानी - विशेषतः मेवाडनी - सामाजि - क, आर्थिक अने राजकीय परिस्थिति केवी हती एनुं संक्षेपमा पण पूर्ण विश्वसनीय वर्णन आ पत्रमां छे. ऋष भविजयजी एक सारा विद्वान् यति हता ( जेना प्रमाण मने बीजा अनेक उल्लेख मांथी मळ्या छे परन्तु ए बना अत्रे उल्लेख करवानी आवश्यकता नथी. ) एथी तेमनी पासे अनेक प्रकारना मनुष्योनुं आवागमन रहेतुं ज हशे . Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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