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________________ अंक ४] १५७ . बृहट्टिप्पनिका नामक प्राचीन जैन ग्रंथ सूचि बृहटिप्पनिका नामक प्राचीन जैन ग्रंथ सूचि बीजा अंकमां परिशिष्ट रूपे ए सूचि प्रकट करवामां पाटण (देवपत्तन ) ना मुख्य पुस्तक भंडारो जोईने आ आवी छे. ए सूचि कोणे अने क्यारे बनावी छे तेनो सूचि बनावी छे. मारवाडना सुप्रसिद्ध जैसलमेरना ज्ञानकाई पतो लाग्यो नथी. परंतु एमां आवेला ग्रंथोना नामो भंडारनु आमां नाम नथी तेथी ते जोवायो होय तेम उपरथी एटलुं अनुमान करीशकाय छे के विक्रमना पं- जणातुं नथी. ए उपरथी एम पण अनुमानाय छे के दरमा सैकाना मध्य भागमां कोई विद्वाने आ सूचि तै- सूचिकी कोई गुजरातनो अने खास करीने तपागच्छनो यार करी छे. कारण के सालवारना जे ग्रंथनामो आमां विद्वान् होवो जोईए. आपला छे तेमां सौथी छेवटनुं नाम, संवत् १४४३ मां सूचिकर्तनी शोधकबुद्धिनो नमुनो आपणने १५५ रचाएला कुल भंडनसूरिना 'प्रवचन पाक्षिकादि आलापक नंबरवाळी नोंध उपरथी स्पष्ट जणाई आवे छे.ए नोधमा शत्रुसंग्रह'नु छ ( नं. १६४). तेना पछीनी सालनो रचाएलो जय महात्म्य ' जेवा प्रसिद्ध अने प्रामाणिक कहेवाता ग्रंथने कोई ग्रंथ ए सूचिमा दाखल थएलो जणातो नथी. तेनी स्पष्टरुपे 'कल्पित' अने 'आधुनिक धनेश्वरकृत' पहेलां, सं. १४३६ मां रचाएला उपदेश चिंतामणि, बताव्यो छे ! मूळ ग्रंथमां तो ग्रंथ कर्ताए ए ' माहात्म्य' (नं. २२३ ) सं. १४२९ मां रचाएली प्रश्नोत्तर रत्न- ने घणुंज प्राचीन अने तेथी घणुंज प्रामाणिक होय तेवु मालावृत्ति (नं २२२ ), १४२६ मा बनेली भक्ता- बताववा माटे आकाश-पाताळ एक कर्या छे. परंतु मरस्तवटीका ( नं. १३२ ); इत्यादि ग्रंथोनी नोंध शोधक विद्वान्ना हाथमा जता ते बधी कत्रिमता एकथएली एमां अवश्य जोवाय छे. परंतु ते पछीनु एके दम उघाडी पडी गई अने तुरत ज तेना माटे तेणे नाम जोवातुं नथी. लगभग पंदरमा सैकाना त्रीजा ज 'कल्पितता' नो चोखो शेरो मारी दधिो. प्रो. वेबर अने पादमां थएला सोमसुंदर, मुनिसुंदर, गुणरत्न, ज्ञानसागर डा. बुल्हरने जो आ शेरानी खबर पडी होत तो ए आदि प्रसिद्ध ग्रंथकारोना ग्रंथोनी नोंध एमां बिलकुल महात्म्यने कल्पित सिद्ध करवा माटे जे मोटी महेनत तेमने लेवाई नथी. तेथी हुँ ए सूचिनी तैयार थवानी तारीख वि. उठाववी पडी हती ते जराए न पडत अने मात्र आ एक सं. १४४० थी ६० नी वच्चे मूकुं छु. एटले आज थी ज प्रमाणथी तेमनो सिद्धांत सत्य साबीत थई लगभग सवापांचसो वर्ष पहेलां ए सूचि थएली छे. शकत. अस्तु. सूचि करनार कोई समर्थ विद्वान् अने उत्कृष्ट साहि- आ सूचिमां जणावेला केटलाक ग्रंथोनो आज क्यां त्य प्रिय यतिजन ज होवो जोईए. तेणे ए सूचि घणीज ए पतो संभळातो नथी. तो ते माटे विद्वानोए शोध बारीकी थी पूरेपूरी जांच साथे करेली छे. ग्रंथोने विषयवार करवानी खास आवश्यकता छे. दाखल! तरीके 'सम्मतितारवी काढ्या छे अने दरेक ग्रंथने तपासी तपासीने तक' जेवा सुप्रसिद्ध अने जैन साहित्यभूषण ग्रंथनी आज नोध्यो छे. सूचिमां ग्रंथ, तेना कर्ता, तेनी रचायानी मात्र एक बृहद्वृत्ति ज मळी आवे छे. परंतु ए सूचिमां साल अने तेनी एकंदर श्लोकसंख्या; एम चार बाबतो तेनी त्रण वृत्तिओ नोंधेली छे. (जुओ क्रमांक ३५८ ) लीधी छे अने दरेक ग्रंथना संबंधमां शोध करी करी तेमां प्रथम वृत्ति तो बहु ज महत्त्वनी छे, कारण के तेना छेवटे आ ४ बाबतोमाथी जेटली मळी तेटली नोंधी छे. कर्ता मल्लवादी जणाव्या छे. मल्लवादी सूरिए सम्मति __सूचिकर्ताए मुख्य करीने पाटण ( अनहिलपुर पत्तन), उपर काईक विवरण लख्युं छे तेनो पुरावो तो आपणने खंभायत (स्तंभतीर्थ ), भरूच (भृगुपुर ) अने प्रभास हरिभद्रसूरिना लेखमाथी पण मळी आवे छे. ऐतिहासिक Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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