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________________ जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट. करवई थकी श्री गिरी थकी असुर छाया निवारण कीवी माहीलो एक अक्षर लेइ तेहनो नाम देज्यो । हुँ तुम ५७ तत्पट्टे श्री विजयदान सूरी। गछि कुशलपणु करीस । विजय शाषाई विजयवंत गछ तह गुर्जरखंडि राओदेशि जामला नगरई ओ० वृ. पाट हुस्यई । श्रीविजयदानसूरी पिहिला त्रीजी पेढाई करमयागोत्रि सा० जगमाल (१०२-२ ) स्त्री सुर्याई शाषा फरती । श्रीसूरीई हाडाति देशि, ( १०३-२) पूत्र | तेहनो वि० सं० १५५३ वर्षे जन्म । वि० सं० ढुंढाड देशि, कछ दोश, मालव देशो, महिशाणा प्रमुख १५६२ वर्षे व्रत, उदयधर्म नाम दीर्छ । वि० सं० नगरई अनेक जिन विंब थाया । एहवइं अणहिल्ल १५८७ श्री सीरोही नगरइं गछ नायक पद हओ। पत्तन आसनी वडली गामि वि० सं० १६२२ वर्षे श्री श्री सृरी अप्रमत्तपणि भव्य जीवनई धर्मोपदेश देता विजयदानसूरी स्वर्ग हुओ। भूमंडलि विहार करता संप्रति श्री तपागछि सर्योपम ५८ तत्पटे श्रीहीरविजय सूरी । सुमता समुद्रे वैराग्य निधि आगिम ४५ ना कोश खंबा- तेहनो गुजराति पाल गपुर नगरें औ० ख मसरा गोयति, गंधारि, पाटणि, सिद्धपुरी, बिजापुरे, देवकिपाटणि, त्रि सा. कुयरा स्त्रीनाथी कुझे वि० सं० १५८३ वर्षे नागौरी, प्रमुष नगरें गीतार्थने पासि सोवाव्या । खट् जन्म । पूत्र हीराचंद नाम | एकदा पाटाग बहिनने मिद्रव्यना विगयना अभिग्रहधारि श्री मुगसीपासनई लवा आयो, तिहां खडाकोटडोई श्रीविजयदान सूरी दर्शनि आव्या | मांडवगढ चौमासी रही पुनः गुजराति- गुल्नो उपदेश सांभला वि० सं० १५९६ वर्षे दीक्षा गोधरा नगरे रही उमरठ नगरें आल्या । तिहां उपकेश लोधी । हीरहर्ष नाम दी) । सं० १६१७ वर्षे नाडुलाइ गछि बिवंदणिक बिरुद धारक श्री सिद्ध सूरी वंशि आ० नगरे श्रीरुषभ प्राप्तादि पं. पद हूओ । १६१८ वर्षे श्री जीवकलसें--लोके केकोजी भट्टारक एहq नाम नाडउल नगरें श्रीनेमीनाथ प्रासादे पाठक पद हुओ । सं० जाणवु-वि० सं० १५८४ वर्षे. श्री विजयदान सूरीने १६२० वर्षे सीरोही नगरई श्रीषभप्रासादि गछ नायक वंद्या । सकल सच्चित त्यागी एकांतर उपवास चुविहार पद हुओ । तिणहीज वर्षे श्रीअजितनाथ बिंब थाप्यो । तपना कारक यति धर्मि आगला योग्य जांणी श्री विजय तिहां थकी श्रीसुरी नंदीय, लोटांणक, ब्राह्मणवाटक, दांन सुरीइ अणाहेल्ल पाटणि माणिकार ( १०३-१ ) अजारी, आबू, ईडरगढ, पोसीनापास, (१०४-१)विजापाटकी वि० सं० १५२१ वर्षे गछ नागक पद देई पुर, प्रमुषई विहार करता अहिम्मदाबादि शिकंदरपुरई स्वपाटि श्री राजविजय सूरी नाम दाधुं | श्री गुरु शिष्य- चोमासी तप करी रह्या । एहवे आगरा नगरई श्रीपर्व युक्त हिंदुआणि देशी विहार करता भरडुया नगरइं आवे थकी ओ. वृ० दो० कृष्णचंद्र स्त्री खीमाइ दोढ आव्या | एहबई कोइक रूचि शाखाना गीतार्थ प्रति श्री मासि तप कीधो छइं । महा आडंबरी देवदर्शनी जाई भन्निमाल प्रमुष क्षेत्रनई बदलबइ जांणी वि० सं० छई । ते देखी श्रीअकवर खीमांनइ तेडो कहई केते १६१३ बर्षि मोरयी नगरई श्री राजविजय सूरीनो गच्छ दीनके रोजे धरे हई । ' तिवारे खीमा कहई 'दोढ माभिन्न हुआ । सं० १६१५ वर्षे उ० श्री वर्म सागर- सके रोजे लीये हइ ।' शाह कहै तेरे कुंण पीर' कीयो । कंदकुदाल नामा ग्रंथ जलसरण खीमा कहई 'मेरा पीर सो हार गुजराति रहई ।' एहवि कीधो । तेहनो लिघावयो, विस्तार करवो, तेहनो मिथ्या कीर्ति सांभली पातसाहई फूरमांन लिषी पं. भाणचंद्रदक्ट दीघो। एकदा सुरीनई स्वप्नइ आवी यक्ष श्री नई अहमदाबादि तेडयाने श्रीसूरीपासे मोकल्या । एटले माणिभद्र कहई.--.तुम्हारी विजयशाषाई पाट थापना श्रीसृरि शिकंदर पुरथकी चोमासई वीतई श्रीशंषश्वर पास कोजो । अपर शाषा तुम्ह पाटि आज थकी नहीं नमी वांदी, रायधन्यपुरई आव्या । तिवारि पं० भाणचंद्रे छइं । पाटि नाम थाप्यो तिवारि महारा नाम पिण तिहां आवी श्रीहरीने सकल वात आगरानी कही Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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