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________________ मं३] धीर वंशावाले तिवारइं श्री आणंद विमल सूरी कहें ............ काम बिहलि आथ्यो । कोडाई कहई ' तसबी पढति हैं।' बावन्न साधुस्यं क्रिया उद्धरि सपरिग्रही जाणता ते शरशाह कहदं 'किक नामकी । ' कोडाइ कहई साधुने गछ बाहिर काडता. भव्य जीवनइं धपिश देह मेरे परके नामको |' ते सांभली शेरशाह कहई तारता, ( १००-२) पुन: जैसलमेरु देसि जल दुर्लभ 'उनकी जमी अस्थत किहां है। '. कोडाइ कहई जांणि श्री सामप्रभ सूरी विहार निषेध्यो छई । पिण 'सोरट देशि (१०१-२) है शश्रृंजय पाहाडई रहई लुकामत व्यापितुं जांणी उ० श्री विद्यासागरनई विहा- छई। ' तिवारै स्त्रीनो प्रेयों शेरशाह शैन्य लइ देश द्रव्य रनी आज्ञा देता हुया | तथा जेसलमर खरतर, मेवाति उवरावा नीकल्यौ। अनुक्रमि पालिताणि नगरी आव्या । सैन्य विजामति, मारबीइ टुका, वीरमगामि पासचंद्र, इत्यादि सर्व तिहां उतन्यो । तिणहिज रात्रि शेरशाह १, कोडाइ नगरि श्री सूरीई छठ तप्पनई पारणि रक्षा तकनई करवई, २ अनि चमरनो विजनार विलाति फकीर आंगारशाह घट विगय त्यागी, महा तपस्वी जाणी घणा जीव श्री जीन नामि ३, ए त्रिहुं लस्कर थकी छांना पाहाडे चढ्या । श्री पूजानी सदहणा आणी । पुनः श्री सूरीना उपदेश थकी रुषभ दर्शन कोडाइने हुओ । कोडाइ कहई ए बेठे सो मेरे आ० वृ० बाफणा गोत्रे दो कर्मि चितोडगढ वास्तव्य पीर । ' एतलई चिकथई सुवर्ण मुहरनो ढिग जिनने सं. १५८७ वर्षे श्री सिद्धाचील सोलमा उद्धार कराव्यो। आगि कीयो । जे देखी महाम्ले छ अंगारल्याह देषी हुओ, श्री सूरीई अजयामेरा, सांगानयर, जेसलमेरे, मंडोवरे, भनि विचारई ज-'ओरतकें लीई चिकथेने काफिराणा नागोरि, नाइलाईई, सादडीई, सीरोही नगरे, पाणि, कीया । पूतलेकु पाउं लगा।' एतलई चिकथो अनि महिसाणे प्रमुख अनेक नगरे घणा जिनबिंब प्रतिष्ठथा। कोडाई ए बिहुं दर्शन करी उतावलि पाछा निकल्या । कलियगि श्रीसरि यगप्रधानोपमः सम जाणिवा यतःउक्तं- अंगारशाह कपट थकी पछवाहें अंतरइ रौ। मनि श्री वदन्ति तस्मैति जनो निरीक्ष्य निरीहितज्ञानतपःक्रियाड्य। मूलनायक उपरि गुर्ज शस्त्र नांखी आसातना कीधी। अवातरत्सर्वगुणः किमेष श्रीमज्जगश्चद्रगुरु द्वितीयः ॥ तिवारि तीर्थ रक्षक देव कोप्या । म्लेछ नाठो। हिंदु जक्ष श्री सूरी छठ, अटम, (१०१-१) चउथ, विंश- जांणी नासतां चिहु दिशि भयंकर देखि सुहाली पुग तिस्थानक, तपना कारक. घट काय जीव यत्नावंत. थारिइ थका षसी देवल बाहिरई अथडाई (१०२-१) समता समुद्र, जन्म पर्यंत अतिचार आलोइ । पांचदिवस हठो भूमी पड्यौ, तत्काल निधन हो । प्रत्यक्ष पर अणसणई अहिम्मदाबाद नगरई निशा पाटकि वि. सं. हुई, हिन्दु यक्षनई कहई, असूरनो उपद्रव्य जिवारि किवा१५९६ वर्षे श्री आणंद विमल सूरी स्वर्ग हा । रई श्री क्षेत्रि हुई तिवारई मुझ ठिकाणि धूप, दीप, अनि श्री सौभाग्य हर्ष सूरी थकी गुर्जराति विजापुर अबीर, अक्षत, यव, .था युगंधरी, पुष्प मरूओ, सवा नगरई वि. सं. १५८२ वर्षे लधुशाली नामें गछ भिन्न वहित रातो वस्त्र, गुलीरंगनो नीलो वस्त्र, बांधण चंदुओ, हुआ । एहमें समद श्री सिद्धाचलि असुरनो उपद्रव तथा ध्वजा सवा बहितनी, सवासेर गुड वांटि देवो, हुओ त कहइ छई। तिहां हुं महा असुरांणइ साहज्य कारी । ए तीर्थनो गुर्जर देशि अणाहिल्ल पत्तन्न पासि कुणगिरि नगरी उपद्रव टाटवः समर्थ टुं । तुम्ह सकल देवनो भक्ति छु । श्रीमाली लघुशाषा अडालजा गोत्रि सो. भाणसी रहेछ। तिणि तीर्थ रक्षक देवि असुरांण जाणी स्थानीक किछु । हनी स्त्री कोडाइ नामि अत्यंत रूप सुदराकारे देषी । केतलेंक दाने चिकथो अनि कोडाइ पाटाणं आव्या । चिकथो श्री शेरशाह आसक हओ। ते स्त्रीनई दरवार एतलि वि. सं. १५९५ वर्ष श्री सिद्धाचलि असुरनो राखी, तेहनी मोहनीई क्षण वेगलो न रहि | एकदा उपद्रव्य हुआ, तिवारई सकल संघ श्वेत.बराचार्य एकठा कोडाइ पवित्र पणि स्मरणि स्मरई छ', एतलई शेरशाह मिली ए तार्थ दुग्ध धाराई जैनमतना आम्नायना प्रयोग Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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