SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंक१] हरिषेणकृत कथाकोश। हरिषेणकृत कथाकोश। [लेखक-श्रीयुत पं. नाथूरामजी प्रेमी, भूतपूर्वसंपादक, जैन हितैषी।] दिगम्बर और श्वेताम्बरसम्प्रदायके विद्वानों ट भी संभवतः द्रविड देशका ही नामान्तर है। द्वारा अनेक कथाकोश रचे गये हैं; परंतु अभी इस कथाकोशमें ही भद्रबाहु-कथानकमें लिखा तक जितने कथाकोश उपलब्ध हुए हैं, वे अपे- है:क्षाकृत अर्वाचीन हैं-ग्यारहवीं शताब्दीके पहलेका अनेन सह संघोऽपि समस्तो गुरुवाक्यतः । अभी तक कोई कथाकोश प्राप्त नहीं हुआ है । इस दक्षिणापथदेशस्थपन्नाटविषयं ययौ ॥४०॥ लेखमें हम जिस कथाकोशका परिचय देना चाहते। हैं वह शक संवतू ८५३, विक्रम संवत् ९८९ और इससे सिद्ध है कि पुन्नाट दक्षिणापथका ही खर नामक वर्तमान संवत् के २४ वे वर्षका बना एक देश है और उसे द्रविड देश मानना कुछ हुआ है और इसलिए इस समय हम उसे सबसे असंगत नहीं हो सकता । उस समय शायद कर्नाप्राचीन जैन कथाकोश कह सकते हैं। टक देश भी द्रविड देशमें गिना जाता था। इस । इस कथाकोशकी एक प्रति पूनेके " भाण्डार संघका एक और नाम द्रमिल संघ भी है। न्यायकर-प्राच्यविद्यासंशोधन मन्दिर" में मौजूद है वानश्चयाल विनिश्चयालंकार और पार्श्वनाथचरित अदिके जो वि०सकी लिखी हुई है। यह जयपर कर्ता सुप्रसिद्ध तार्किक वादिराजने अपनेको द्रमिलके गोधाजीके मन्दिरमें लिखी गई थी और संभवतः संघीय लिखा है । द्रविड देशको द्रमिल देश भी वहींसे गवर्नमेण्ट के लिए खरीदी गई. है । इसकी कहते हैं। श्लोकसंख्या १२५००, पत्रसंख्या ३५० और कथासंख्या सुप्रसिद्ध हरिवंशपुराणके कर्ता प्रथम जिनसेन १५७ है। प्रायः सारा ग्रन्थ अनुष्टुप् छन्दोमे रचा भी इसी पुन्नाट संघके आचार्य थे:.गया है । रचना बहुत प्रौढ और सुन्दर व्यत्सष्टापरसंघसन्ततिबृहत्पुन्नाटसंघान्वये-" तो नहीं है; परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायके अन्य कथाकोशोस अच्छी है। हरिवंश-प्रशस्ति । इसके कर्ता हरिषेण नामक आचार्य हैं जो अप- यह कथाकोश भी उसी वर्द्धमाननगरमें बनाया नी गुरुपरम्परा इस भांति बतलाते हैं-१ मौनि गया है जहाँ कि जिनसेनसूरिने हरिवंशपुराणकी भट्टारक, २ श्रीहरिषेण, ३ भरतसेन और ४ हरि- रचना की थी। और जब कि जिनसेन पुन्नाट संघके षेण । हरिषेण पुन्नाट संघके आचार्य थे । यद्यपि दिग- ही आचार्य हैं तब संभव है कि हरिषेण आचार्य म्बर सम्प्रदायके अनेक आचार्योंने इस संघको जिनसेनकी ही शिष्यपरम्परामें हों। यदि मौनिभट्टा. पांच जैनाभासोंमें एक बतलाया है; परन्तु फिर भी रककी गुरुपरम्पराका पता लग जाय तो इस बातका यह दिगम्बर सम्प्रदायका ही भेद था। यह द्रावि- निर्णय सहज ही हो जाय। डसंघका नामान्तर जान पडता है । द्रविडदेशीय वर्द्धमानपुर कर्नाटक देशका ही कोई प्रसिद्ध होनेके कारण इसका द्रविडसंघ नाम हुआ है।पुन्ना- नगर है। मालूम नहीं इस समय वह किस नाम१ मेरे द्वारा सम्पादित और जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, से प्रसिद्ध है। जिनसेनसूरि लिखते हैं:-- बम्बई, द्वारा प्रकाशित 'दर्शनसार ' में जैनाभासोंका वि. "कल्याण: परिवद्धमानविपुलश्रीवर्द्धमाने पुरे. स्तृत विवेचन देखिए। श्रीपालियनन्नराजवस्तौ पर्याप्तशेषः xx" २ दक्षिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो। इसी प्रकार इस कथाकोशके कर्ता लिखते हैं:॥२८॥ देवसेन। ___“जैनालयवातविराजिताते "३ आपटेकी संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरीमें पुन्नाटका अर्थ 'कर्नाटक देश' लिखा है। चन्द्रावदातद्युतिसौधजाले। Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy