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________________ जैन साहित्य संशोधक [भाग १ नी शरुआत पहेलो मानवो जोईए. वळी दक्षिण हुना नामथी आगळ नहीं चलावता, तेमना समकाअने उत्तरना पद्यात्मक बौद्ध ग्रंथोनी छन्द अने भा- लीन स्थविर संभति विजयना नामथी आगळ षाशली विषयक विशिष्टताओना प्राचीनतम पद्यात्म- लंबावे छे. ए उपरथी एम फलित थाय छ के क जैन सिद्धान्तोमा मळी आवता अल्प या आध- पाटलिपुत्रना संघे एकत्र करेलां अंगो मात्र श्वेतां कांश साम्यद्वारा, आपणे जो, आ बे सीमाओ वञ्चे बरोना ज सिद्धान्तो मनाया हशे, पण आखी जैन आवेला प्रस्तुत विवादास्पद समयना कालविषयक समाजना नहीं. आवी वस्तुस्थिति होवाथी, आपअंतरनो विचार करीए छ.ए तो जैन साहित्यनी णे सिद्धांत रचनाना कालने जो युगप्रधान श्रीस्थू. शरुआतनो समय, उत्तरना बौद्ध साहित्यना समय लभद्रना समयमा एटले ई पूर्वे त्रीजी शताकरतां पाली साहित्यना समयनी अधिक समीप द्विना प्रथम भागमा स्थिर करीए तो ते खोटुं नहीं ठरे छे.. गणाय. वळी आ प्रकारना अनुमानने श्वताम्बर संग्रदा- आपणी उपरोक्त तपासनं परिणाम जो प्रामाणियनी एक परपरागत कथाद्वारा समथेन पण मळ कताने पात्र बनतं होय.----अने ते बनवंज जोहए छे. परंपरा' एवी छे के जे वखते भद्रबाहु युगप्रधान कारण के तेना बाधक प्रमाणोनो अभाव छ-तो हता ते वखते बार वर्षनो एक दीर्घ दुष्काळ पडथो वर्तमान जैन साहित्यनी उत्पत्तिनो समम ई. स. हतो. ते दष्काळना अंते पाटलीपुत्रमा संघ भेगो पर्ने लगभग ३०० वर्ष पहलां अथवा ए धर्मनी थयो हतो अने तेणे सघळां अंगो एकत्र क्या हता. उत्पत्ति पछी लगभग बे शताद्वी पहेलां मूकी. आ भद्रबाहुना अवसाननी तारीख श्वताम्बरांना शकाय नहीं परंत आ उपरथी एम तो खास काहे कथन प्रमाणे वीर पछी १७० वर्षे छे, अने दिगम्ब- मानी लेवानी जरूर नथी ज के जैनो पासे पोताना रोना कथन प्रमाणे ते १६२ वर्षे छे. आ उपरथी अंतिम तीर्थकर अने सिद्धान्तरचनाना आ समय तेओ चंद्रगुप्त, के जे श्वेताम्बरोना उल्लेखानुसार वी. वच्चेना अन्तरालमां, एक अनिश्चित अने असंकनि. पछी १५५ मा वर्षे गादीए आव्या हतो, तेना लित धार्मिक तथा पौराणिक परंपरा उपरांत खास समयमा थया हता. प्रा. मक्समूलर चन्द्रगुप्तनो आधार राखवा योग्य वधारे सदृढ धमेसाहित्य समय ई स. पूर्व ३१५-२९१ जणावले! छ तथा वेस्ट- इज नहीं कारण के एम जो मानवामां आवे ता रगार्ड (Vestergaard) अने केन (Kern) वधारे । र पछी जैन परंपरानी विश्वसनीयताना विषयमा जे संभावत रीते ते समय ई. स. पूर्व :२० जणावे छे. विरोधदर्शक प्रमाणो मी. बाथै रजु करेला छे ते आ बन्ने वच्च जे अल्प तफावत छ त महत्त्वना नथी. वास्तविकमां पाया विनानां छे एम कही शकाय गभग आ हिसाये जैन सिद्धान्तनो रचना-समय नहीं. तथापि एक बाबत अहीं ध्यानमा लेवा ई. स. पूर्वे चोधी शदीना अंतमां अगर तो त्रीजी लायक छे. अने ते ए छ के श्वेताम्बरो अने दिगशदीनी शरुआतमां आवे छे. साथे साथे ए. पण म्बरो ए बन्नेन एम कहेवू छे के अंगोसिवाय पहेलांना लक्ष्यमा राखवार्नु छे के उपरोक्त संप्रदाय-परंपरानो भावार्थ ए छे के पाटलिपुत्रना संघ, भटबा- कालमा तेनाथी पण वधारे प्राचीन एवां चौद पूर्वो हुनी साहाय्य सिवाय ज अगीआर अंगो एकठां हता. अने ते पूर्वोनुं ज्ञान क्रमथी नष्ट थतुं थतुं को हतां. भद्रबाहुने दिगम्बरो अने श्वेताम्बरो अंते सर्वथा नष्ट थई गयु हतुं. बन्ने सरखी रीते पोताना आचार्य माने छे. तेम चौट पूर्वाना विषयमा श्वेताम्बरोनी मान्यता छतां श्वेताम्बरो पोताना स्थविरोनी यादीने भद्रबा आ प्रमाणे छ:-चौद पूर्वो ए दृष्टिवाद नामना बारमा १ परिशिष्ट ९,५५. अंगमां समाएलां हतां अने ते महावीर निर्वाण २. Geschiedenis van het Buddhisine पछी १००० वर्ष व्यतीत थया पहला नष्ट थयां हता. in Indie, ii, p. 266 note. जो के आ कथन प्रमाणे चौद पूर्वो तो सर्वथा नष्ट Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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