SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य संशोधक [भाग १ छे, ते जैन पुस्तकारोहणना समयथी घणी शदीओ घणी मोटी संख्या तैयार कराववी पडी हशे. हघे पहेलां रचाएला हता, तो ते द्वारा आपणे जैनोना देवर्धिगणीए लिद्धान्तने पुस्तकारूढ कराव्यो (अंतिम) तीर्थकर अने प्राचीनमा प्राचीन ग्रंथो ए एवो जे लेखी संप्रदाय मळे छ तेनो भावार्थ प्रायः बन्ने वचेना गाळाने, जो के सर्वथा दूर नहीं करी उपर प्रमाणेनोज होवो जोईए कारण के ए तो शकीए तो पण घणे अंशे अल्प करी आपत्रा समर्थ भाग्ये ज मानी शकाय तेवं छे के तेनी पहेला जैन थई शकीशं. साधुओ जे कांई कंठस्थ करता हशे तेने सर्वथा सर्वसंमत संप्रदायनी अनुसार जैनसिद्धान्त पल- नज लखता होय. ब्राह्मणो वेदनुं अध्ययन कराव. भिनी सभामां देवर्धिगणीना अध्यक्षपणा नांचे, नि- वामां लिखित पुस्तकोनो उपयोग करता नथी छतां श्चित करवामां आव्यो हतो. आ बमाघ वीर निर्वाण पण तेमनी पासे तेवां पुस्तको तो जरूर जोवामां पछी ८० (अथवा ९९३)मा वर्षे एटले १० स० आवे छे. तेओ (ब्राह्मणो) आ पस्तकोने खानगी ४५४ ( अगर ४६७ । मां' बन्यो हतो, एम कल्पसूत्र उपयोग माटे एटले के गुरुनी स्मरणशक्तिने मदत [१४८ ] उपरथी जणाय छे. संप्रदाय एवी छ के करवा माटे राखे छे. मारूं दृढ मानवू छे के जैनो ज्यारे देवर्धिगीए सिद्धान्तने नष्ट थई जवाना जो. पण आज पद्धतिने अनुसरता हशे. बल्के तेओ खममां जोयो त्यारे तेमणे तेने पुस्तकाधिरूढ करा. ब्राह्मणोथी पण वधारे आ पद्धतिर्नु अनुसरण करव्यो. तेनी पहेलां, आचार्यों क्षुल्लकोने सिद्धान्त ता हशे, केमके ब्राह्मणोनी माफक तेओर्नु एवं शीखवती वखते लिखित ग्रंथोना बिलकुल उपयोग मानवू तो हतुं ज नहीं के लिखित पुस्तको अविश्वकरता न होता. देवर्धिगणीना समय पछी ज लिखि- स्य छे. तेओ तो मात्र जे एक प्रचलित रिवाज त पुस्तकोनो उपयोग शरू थयो. आ हकीकत तहन हतो, के आगमनुं ज्ञान मौखिकरीते ज एक पेढीसाची छे. कारण के प्राचीन समयमा पुस्तकोनो द्वारा बीजी पेढीने अपावू जोईए, तेने लईने जलिबिलकुल उपयोग थतो म हतो एम आपणने बीजी खित ग्रंथोनो विशेष उपयोग करवामां संकोचाता हकीकतो उपरथी पण जणाई आधेले. ब्राह्मणो तो हता. है अहीं एम प्रतिपादन कर लिखित पुस्तक करतां पोतानी स्मरणशक्ति उपर के जैनोना पवित्र आगमो असलथी ज छुटा छवाया ज विशेष आधार राखता हता अने निःसंदेहरीते पण आवी रीते, पुस्तकोमा लखेला ज हता. अने जैनोए तेमज बौद्धोए तेमनी अ आ प्रथान, एम न कहेवानुं खास कारण बीजू काई नहीं, परंतु अनुकरण कर्यु हतुं. परंतु अत्यारे जैनयतिमो पो- बौद्ध भिक्षुओ पासे लिखित पुस्तको न हतां एम ताना शिष्याने शास्त्र शीखवती वखते लिखित जे कहेवाय छ तेज छे. बौद्ध भिक्षुओ पासे आवां पुस्तकोनो उपयोग अवश्य करे छे. आ उपरथी पुस्तको नहतां तेना प्रमाण तरीके एवं कहेवामां आपणे मानवु पडे छे के शिक्षण पद्धतिमां थएलो आवे छे के तेमनां सूत्रोमां, ज्यारे प्रत्येक जंगमवस्तु आ फेरफार देवधिगणीने आभारी छे, एम बताव. थी लईने नानामां नानी अने क्षुद्रमा क्षुद्र एवी नारो वृद्ध संप्रदाय तहन साचो छे. कारण के आ घरमां वापरवा लायक वासणो जेवी चीजोनो पण बनाव बहुज महत्त्वनो होवाथी भूली शकाय तेम कोई ने कोई रीतिय उल्लेख थपलो अवश्य जडे छे" नथी. प्रत्येक आचार्यने अथवा तो छेवटे प्रत्येक त्यारे लिखित पुस्तकनो क्यां ए पण बिलकुल उल्लेख उपाश्रयने आ पवित्र आगमोनी नकलो परी पाडवा थएलो जोवामां आवतो नथी. आ कथन, मारा मामाटे देवधिंगणीने सिद्धान्तना पुस्तकोनी खरेखर नवा प्रमाणे, ज्यां सुधी जैन यतिओ, भ्रमणशील १. संभवित न लातुं होवा छतां र शक्य छ के सिद्धा जीवन गुजारता हता त्यां सुधी तेमने पण लागु तनिर्णयनो समय आ करता ६० वर्ष पछी एटले ई. स. पडे तेवु छे. परंतु ज्यारथी तेओ पोताना ताबाना ५१४ (अधवा ५२७ ) होवो जोईए. जुओ कल्पसूत्र, उपो- 9. Sacred Books of the East, Vol.XIII द्घात पृ. १७. Introduction, p, XXXIII, Aho I Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy