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________________ अंक २] डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना. जातना सामान्य सिद्धान्तो उपर आधार राखवानी नथो कहेतो के आवी गुर्वावलीओ पाछकाई आवश्यकता नथी. कारण के तेओने ( जैनोने) ळथी पण जोडी कढाती नथी के अपूर्ण पट्टापोताना सिद्धान्तोनुं एटलं बधं स्पष्ट ज्ञान हतुं के वलीओने पूर्ण, एटले हिंदुओना शब्दमां कहीए तो तओए घणीज नजीवी बाबतमा मतभेद धरावनार 'पक्की' बनावी शकाती नथी. कारण के दरेक संपुरुषोने पण निसवरूप जाहेर करी, पोताना श्रद्धा- प्रदायने, पोतानो संप्रदाय एक प्रतिष्ठित आप्तपुरुषलुओना विशाल समुदायमाथी तेमने जूदा करी थी प्रामाणिकरीते उतरी आवेलो छ, एम बताववा दीधा हता. आ कथननी सत्यताना प्रमाण तरीके खातर पोतानी गुरुपरंपराना नामो उपजावी काढडॉ. ल्यूमने (Dr Le..monn) प्रकट करेली श्वेता- वानी स्वाभाविक रीतेज जरूर पडे छे. परंतु कल्पम्बर संप्रदायनी सात निन्हवो विषेनी परंपरा' छे. सूत्रमा जे एक,स्थविरो,गणोअने शास्त्राओनी विस्तृतथा दिगम्बरो, जे श्वेताम्बरोथी महावीर निर्वाण त नामावली आपली छ तेने कल्पी काढवामांजैनोन पछी प्रायः बीजी अथवा त्रीजी शाब्दिमां, जुदा कोई पण प्रकारनुं प्रयोजन होय तेमहं मानी शकतो पड्या हता, तेओ काई तेमना प्रतिस्पर्धिओ (श्वेता नथी. कल्पसूत्रमा जेटली विगतो आपेली छ-तेटली म्बरो ) थी तात्त्विक सिद्धान्तोमा मोटो मतभेद पण विगतोनुं ज्ञान त्यार पछीना जैनाने रहो न हतुं. धरावता नथी छतां पण आचाराविषयक तेमना तेम तेथी अधिक जाणवानो तओए क्यारे डोळ केटलाक भिन्न नियमोने लीधे, श्वेताम्बरोए तेमने पण कर्यो न हतो. गुरुपरंपरानो नोंधयोग्य बधोव्यपाखंडिओना नामे वगाव्या छे. वहार चलाववा माटे कल्पसूत्रमा आपेली संक्षिप्त आ सघळी हकीकतो उपरथी आ बाबत स्पष्ट स्थविरावली पर्याप्तज हती. तेम छतां पग तेमा रीते सिद्ध थाय छे के जैन आगमो [ नुहालतुं स्व- आवली विस्तृत स्थावरावली-के जेमां पण केटरूप ] नक्की थयां पहेलां पण जैनधर्म एवा अव्यव- लांक तो एकलां नामोज जोवामां आवे छे-ते ए वा. स्थित अथवा अनिर्दिष्ट स्वरूपमा विद्यमान न हतो, बत स्पष्टरीते जणावे छ के जैनो पोताना प्राचीन के जेथी, तेनाथी अत्यंत भिन्न एवा अन्यधर्मो (द. धर्माचार्यो-स्थविरोनी यादगिरी: शनो ) ना सिद्धान्तो द्वारा तेनुं असल स्वरूप परि- बधो रस धरावता हता. ते स्थविरावलीमा आले. वर्तित अगर कलुषित थयुं हतुं; एम मानवाने आप खेला युगो तथा बनावोनी यथार्थ माहीती तेना णने कारण मळे. परंतु आथी विरुद्ध उपर्युक्त प्र. पछी थोडीक ज शदीओमां नष्ट थई गई हती. माणो एम तो सिद्ध करी आपे छे खरां के तेमनी परंतु. मात्र आटलं सिद्ध करी बताववाथी के सूक्ष्ममां सूक्ष्म मान्यता पण सुनिश्चित स्वरूपवाळी जैनो तेमना आगमोनुं स्वरूप नक्की थया पहेलां हती. पण पोताना धर्म तथा संप्रदायन सतत चाल रा. जेवी रीते जैनोना धार्मिकसिद्धान्तोनी बाबतो खवा माटे, तेम ज अन्यदर्शनीय सिद्धान्तोना सं. आ रूपे सिद्ध थई शके छे तेवीज रीते तेमनी ऐति- मिश्रणयोगे उत्पन्न थती भ्रष्टताथी तेन बचावी सुरहासिक परंपराविषयक बाबतो पण सिद्ध थई शके क्षित राखवा माटे योग्य गुणसंपन्न हता; आपणे तेवी छे. वंशपरंपराथी चालती आवती जे विविध आविषयमां कृतकार्य थई शकता नथी. आपणे ए गच्छोनी विस्तारयुक्त गुर्वावलीओ मळी आवे छे पण बतावी देवं जरूरन छ के तेओमां जे जे बाबत तथा जैन आगमग्रंथोमा जे स्थविरावलीओ उपल- करी शकवानुं सामर्थ्य हतुं ते सघळु तेमणे संपूर्णब्ध थाय छे ते स्पष्ट बतावी आपे छे के जैनो पो. रीते कर्यु हतुं. आ चर्चा उपरथी आपणे स्वाभा. ताना धर्मनो इतिहास राखवामां केटलो बधो विकरीते ज वर्तमान जैनसाहित्यना कालनी चर्चा रस धरावता हता हुँ एम कांड चोक्षस उपर आवी जईए छीए. आ विषयमां जो आपणे 9 See Indische Studien, XVI. आटलं सिद्ध करी शकीए के जैन साहित्य अथवा See Dr. Klatt, Ind. Ant. Val.XI. तो छेवटे ते पैकी जे केटलाक सौथी प्राचीन ग्रंथो Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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