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________________ ॥अहम् ॥ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स । * जैन* । साहित्य संशोधक . . 'पुरिसा ! सच्चमेव समाभिजाणाहि। सच्चस्साणाए उवहिए मेहावीमारं तरइ ।। 'जे पगं जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सर्व जाणइ से एगं जाणइ ।' विडं, सुयं, मयं, विण्णायं जं एत्थ परिकहिज्जइ।' -निर्ग्रन्थ प्रवचन: (आचाराङ्ग सूत्र)।। भाग १ | महावीरजयन्ती; महावीर-निर्वाण संवत् २४४६ | अंक १ - - - - - - - मङ्गल। - - - नमो अरिहंताणं। नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहूणं । जयइ जगजीवजोणी-विआणओ जगगुरू जगाणंदो। जगनाहो जगबंधू जयइ जगप्पिआमहो भयवं ॥ जयइ सुआणप्पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ। जयइ गुरू लोयाणं जयइ महप्पा महावीरो॥ नन्दी सूत्र, देववाचक क्षमाश्रमण । Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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