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________________ ज्ञान-प्रदीपिका (ज्योतिषशास्त्रम्) श्रीमवीरजिनाधीशं सर्वशं त्रिजगद्गुरुम् । प्रातीहार्याष्टकोपेतं प्रकृष्टं प्रणमाम्यहम् ॥१॥ अलोक्यनायक, सर्वज्ञ, अशोक वृक्षादि आठ प्रातिहार्यों से युक्त, प्रकृष्ट श्रीमहावीरस्वामी को मैं प्रणाम करता हूं। स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मीयां भारतीमाईती सतीम् । अतिपूतामद्वितीयामहर्निशमभिष्टुवे ॥२॥ स्थिति, उत्पत्ति. और प्रलयस्वरूपिणी, पूज्या सती, अत्यन्त पवित्र और अद्वितीय श्रीजिनवाणो देवी को मैं ( ग्रन्थकार ) गतदिन स्तुति करता हूँ। ज्ञानप्रदीपकं नाम शास्त्रं लोकोपकारकम् । प्रश्नादर्श प्रवक्ष्यामि पूर्वशास्त्रानुसारतः ॥३॥ पहले के कहे हुए शास्त्रोंके अनुसार लोक के उपकारक ज्ञानप्रदीपिका नामक प्रश्नतंत्र के आदर्श शास्त्र को कहूंगा।। भूतं भव्यं वर्तमानं शुभाशुभनिरीक्षणम् । पंचप्रकारमार्ग च चतुष्केन्द्रबलाबलम् ॥४॥ आरूढछत्रवर्ग चाभ्युदयादिबलाबलम् । क्षेत्रं दृष्टिं नरं नारी युग्मरूपं च वर्णकम् ॥५॥ मृगादिनररूपाणि किरणान्योजनानि च । आयूरसोदयाद्यञ्च परीक्ष्य कथयेद् बुधः ॥६॥.. Aho! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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