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________________ (ग) से सर्वथा मिलता है। विद्वानों का कथन हे कि जैनधर्म एक वैज्ञानिक धर्म है । अतः उल्लिखित मन्तव्य की एकता मुझे तो नितान्त ही उचित जंचती है। किसी किसी ज्योतिषी का यह भी मत है कि अन्यान्य कारणों के समान ग्रहों का अवस्थान भी मानव के सुखदुःख में अन्यतम कारण है। जो कुछ हो; ग्रहों की स्थिति से भी मनुष्यों को शुभाशुभ फलों की प्राप्ति होती है इससे तो सभी सहमत होंगे। २-दिगम्बर जैन साहित्य में ज्योतिषशास्त्र का स्थान । प्रथमानुयोगादि अनुयोगों में ज्योतिषशास्त्र को उच्च स्थान प्राप्त है । गर्भाधानादि अन्यान्य संस्कार एवं प्रतिष्ठा, गृहारंभ, गृहप्रवेश आदि सभी मांगलिक कार्यों के लिये शुभ मुहूर्त का ही आश्रय लेना आवश्यक बतलाया है। तीर्थङ्करों के पाँचों कल्याण एवं भिन्न भिन्न महापुरुषों के जन्मादि शुभमुहूर्त में ही प्रतिपादित है। जैन वैद्यक तथा मंत्रशास्त्र सम्बन्धो ग्रन्थों में भी मंगल मुहूर्त में ही औषध सम्पन्न षवं ग्रहण और शान्ति, पुष्टि, उच्चाटन आदि कर्मों का विधान है। कर्मकाण्ड-सम्बन्धी प्रतिष्ठापाठ आराधनादि ग्रन्थों में भी इस शास्त्र का अधिक आदर दृष्टिगोचर होता है। यहीं तक नहीं प्राद्याष्टकादि जो फुटकर स्तोत्र हैं उनमें भी ज्योतिष की जिक्र है। बल्कि नवग्रहपूजा अन्यान्य आराधना आदि ग्रन्थों ने ग्रहशान्त्यर्थ ही जन्म लिया है। मुद्राराक्षसादि प्राचीन हिंदू एवं बौद्ध प्रथों से भी जैनी ज्योतिष के विशेष विज्ञ थे यह बात सिद्ध होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री हुवेनच्चांग के यात्राविवरण से भी जैनियों की ज्योतिषशास्त्र की विशेषज्ञता प्रकटित होती है। उलिखित प्रमाणों से यह बात निविवाद सिद्ध होती है कि जैन साहित्य में ज्योतिषशास्त्र कुछ कम महत्त्व का नहीं समझा जाता था। ३---दिगम्बर जैन ज्योतिष ग्रन्थ । आयशान तिलक आदि दो एक ग्रन्थ को छोड़ कर आज तक के उपलब्ध दिगम्बर जैन ज्योतिष प्रन्थों में मौलिक ग्रन्थ नहीं के बराबर हैं। हां, संख्यापूर्ति के लिये जिनेन्द्रमाला, केवलज्ञानहोरा, अर्हन्तपासाकेवलो, चन्द्रोन्मीलन प्रश्न आदि कतिपय छोटी मोटी कृतियाँ उपस्थित की जा सकती हैं। परन्तु इन उलिखित रचनाओं से न जैन ज्योतिष ग्रन्थों की कमी की पूर्ति ही हो सकती है और न जैन साहित्य का महत्त्व एवं गौरव हो ब्यक्त हो सकता है। यही बात जैन वैद्यक के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। सचमुच दर्शन, न्याय, व्याकरण, काव्य अलङ्कारादि विषयों से परिपूर्ण जैन साहित्य के लिये यह त्रुटि Aho! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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