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________________ १५ भास्वत्याम् सितः पर्वतः पर्यली वत्सगुल्मौ । पुरी चोज्जयिन्यायं गर्गराटं कुरुक्षेत्र मेरू भुवो मध्य रेखा ॥ १ ॥ यहङ्कोज्जयिनीपुरीपरि कुरुक्षेत्रादि देशान् पृशत् । सूत्रं मेरु तं बुधैर्निगदिता सा मध्य रेखा भुवः" ॥२॥ • भा० टी० --- रेखा के योजनको भुक्ति से गुणा कर ८० का भाग देने से जो लब्घ मिलै वह कलादि रेखा के पूर्व पश्चिम कमसे ऋण धन संज्ञावाला देशान्तर होता है ॥ १५ ॥ सूर्य की उदाहरण – कुरुक्षेत्र से ६४ योजन काशी है इस को ---- युक्ति 9 से गुणा तो ४४८ हुए इसमें ८० का भाग दिया तो सूर्य का देशान्तर कलादि ५/३६ हुआ । एवं चन्द्रमा का ७२/० चन्द्रकेन्द्रका ८०1० रेखा से काशी पूर्व है अतः देशान्तर ऋण संज्ञक हुआ ।। ९९ ।। देशान्तरं दृग्गणिता प्रसाध्य इतीह कल्पान्त समोध्रुवः स्यात् ॥१२॥ इति श्रीमच्छतानन्द विरचितायां भास्वत्यां तिथ्यादि ध्रुवाधिकारः प्रथमः ॥ १ ॥ सं०टी० - रेखायां स्वदेश संस्कारोनास्तितस्मात्प्राक् पश्चाद् भागे देशान्तरो नास्तीति सा रेखाकस्मिन् कस्मिन् देश इत्याकांक्षयां श्रीसूर्यसिद्धान्त उक्तं राक्षसालय दिवो कशैलयोर्मध्यसूत्रगारोहितकपर्वती च सन्नि Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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