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________________ तिथ्यादिध्रुवाधिकारः । इसमें २०० का भाग देनेसे चन्द्रमाका वीज अंशादि धन ३।६।१८ हुआ। पूर्वके लब्ध ३।२७ को चन्द्रकेन्द्र के भुक्ति १०० से गुणा किया तो ३४९।० हुए इसमें १०० का भाग दिया तो चन्द्रकेन्द्र का वीज अशादि धन ३।२७० हुआ ॥ १० ॥ " मेषादिगे सायनभाग सूर्ये दिनाईभा या पलभा भवेत्सा । त्रिष्टा हतास्युर्दशभिर्भुजङ्गै दिग्भिश्चरा नि गुणो धृतान्त्या ॥१॥ कलासप्त ७ रवे क्तिः खनन्दाश्व ९० विधोः स्मृताः । शतं १०० कलानि केन्द्रस्य राहोश्चैव जिना २४ गतिः" ॥ २॥ देशान्तर विधिःरेखा स्वदेशान्तर योजनघ्नी गतिग्रहस्याभ्रगजर्विभक्ता । लब्धा हि लिप्ता खचरे विधेयाः प्राच्यामृणं पश्चिमतो धनन्ताः॥११॥ सं० टी०-रेखाजनितस्वदेशान्तरयोजनं ग्रहभुक्त्यागुणितोऽभ्रगबिभक्ता लब्धं रेखायाः पूर्वपश्चिमक्रमेणऋणधनसंज्ञक देशान्तरं भवति ॥ ११ ॥ "पुरीरक्षसां देवकन्याथ काञ्ची Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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