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________________ १२८ भास्वत्याम् । शताहता हर्दलतस्तदाप्तमहर्गतैष्यो घटिकादिकालः ॥ ५ ॥ सं० टी० - दशन्नादश गुणिता छाया शतसंयुता च पुनः मध्यप्रभोनेह शङ्कु र्भवति । अहर्दलं दिना शताहतं यज्जातं तत्तदाप्तं शकुना विभाजितं महगतैष्योघटिकादिकालो भवति ॥ ५ ॥ मा० टी० - इष्ट छाया के १० से गुणि के उसमें १०० को युतकर के फिर उसमें मध्य प्रभा घटाने से शङ्क होता है । दिना र्द्ध को १०० से गुाणे के उसमें सवर्णित शङ्कु का भाग देने से फल गत भोग्य ( मध्याह्न के पूर्व गत मध्याह्न के बाद भोग्य ) घटी होती है ॥ ५ ॥ उदाहरण – कल्पित इष्ट छाया १० है, इसको १० से गुणा किया तो १०० हुए इसमें १०० मिलाया तो २०० हुए, इसमें प्रभा २३। २७ को घटाया तो शङ्कु १७६।३३ हुआ । दिनार्द्ध १६ । २९ को १०० से गुणा तो १६४८।२० हुए इसको ६० से गुणि के सवर्णित किया तो ९८९०० हुए, इसमें सजाती शङ्कु १०५९३ का भाग दिया तो घटी आदि | २० हुई ॥ ५ ॥ छाया विधिः खखेन्दु निम्नायुदला गतैष्यनाड्याप्त मध्य प्रभयासमेतम् । शतोनितं तद्दशभिर्विभक्तम् लब्धांगुलाद्या भवतीप्सिताभा ॥ ६ ॥ - Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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