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________________ त्रिप्रनाधिकारः । सं० टी० - सौम्यं चरार्द्ध षड् षड्गुणीतं खदशभागहीनं दशमांशै रहितं दशाप्तं तदक्षिमध्ये ६० | २२हीने कृते भानोः सूर्यस्योदक मध्यप्रभा भवेत् तु षड्गुणितं चरार्द्ध स्वरामांशयुतं दशाप्तं तदक्षिमध्ये ५८ | २२ युते कृते सूर्यस्य दक्षिणतः प्रभा भवेत् ॥ ४ ॥ ·-- भा० टी०. चर को ६ से गुणि के दो जगह धरै एक जगह १० का भाग देने से जो लब्ध मिलै उसको दूसरी जगह घटा फिर उस में दश का भाग देने से जो लब्ध मिलै उसको ६०/२२ में घटाने से सौम्य गोल के सूर्य में प्रभा होती है और याम्य गोल में चर को ६ से गुणा करके अपने तृती यांश से युत करें फिर उस में १० का लब्ध मिलै उसको ५८ २२ में युत होती है || ४ || भाग देने से जो करने से प्रभा १२७ उदाहरण-चर ६८।३३ को ६ से गुणा तो इसको दो जगह रक्खे एक जगह इसमें सौम्य गोल में १० ० का भाग दिया तो लब्ध ४१।२ मिले इसको ४१०।१८ में घटाया तो ३६९।१६ बचे इसमें १० से लब्ध ३६।५५ मिले इसको ६० २२ में हीन किया तो सौम्यप्रभा दूसरी जगह का भाग देने २३।२७ हुई ।। ४ ॥ छाया शङ्कु घटी विधयः छायादशन्ना शतसंयुता च मध्य प्रभोना भवतीह शङ्कः । Aho! Shrutgyanam ४१०।१८ हुए सूर्य है इससे
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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