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________________ कितना सुंदर काव्य ! कितनी सरल रचना ! ! कितनी मिठी भाषा !!! चंदप्पह चरियं-यह बहुतही सुंदर काव्य है. इस काव्य के लिये मे क्या प्रशंसा करूं आपही देखकर स्वयं इसके प्रशंशक बन जायंगे इस ग्रंथका जरूर संग्रह करे. इस ग्रंथके कर्ता जिनेश्वर सुरि है तब इस ग्रंथके विषयमे लिखनेकी जादा जरुरत नहीं. मुल किमत ३ रुपिया व भेट किमत १ रुपया -: युक्ति प्रकाश :अगर आपको बौद्धमतसे वाकब होना हो और उनका खंडन देखनेकी इच्छा होतो सिर्फ एकही युक्तिप्रकाश ( मूल और भाषांतर सहित ) नामका ग्रंथ मंगवाकर देखे इस ग्रंथमे जैन धर्मकी बहोतही अच्छी प्रकारसे मंडन किया है और बौद्ध मतका खंडन किया है. कर्ता कवि पद्माबिजयजी गणि तृतीया आ. मुल किमत २ रु. भेट किमत १ रु. विचित्र वस्तु ? ) खुष खबर ( अद्भुत चीज खास कामरुप देशोपन्न वह असली सियालसिंगी जिसकी तारीफमे लोग यह कह करते हैं की-- " सियालसिंगी श्वेतवाजा क्या करेंगा रुठा राजा” जिसके हमने गहरे परिश्रमके साथ प्राप्त की है. इसको विधिपूर्वक मंत्रसे मंत्रित करके पास रखने चालोंकी सर्वेच्छाओंकी सिद्धी होती हैं वशी करणमेंभी यह अपने ढंगकी एक है, तथा इसके प्रभावसे राजसभा सन्मान, मुकदमोमें विजय प्राप्ति, भूत पिशाचादिकोंका उत्पात नष्ट, ३६० मूठ अपने शरीरपर नहीं आती कामरुप देशके लोक मंत्रितकर जांघको चीरकर बीचमे रख है. शत्रूभी वशमें होकर शरणमें आ जाता हैं. वशी करणमें मी यह सियालसींगी अपने ढंगर्क एक है न्योछावर रूपीया २॥ हाथाजोडी नामका एक वृक्षका फल जो देखनेमें साक्षात हातके अंगुलियोंसे वेष्टित है पारदर्शक है जिसकी किंमत प्रतिहात चार आना है. दो हाथसे दश हाथतकका मिलता है कमसेकम दो हाथका आता है ज्याहामें दश हाथतक जो बडेही परिश्रमसें प्राप्त हुवा है प्रकृतिकी जो वृक्षोमें ऐसे २ फल लगते है. यह वृक्ष कामरूप देशमें होता है. एक डबीमें मंत्रसे मंत्रित करके जिसके नामसे वह रखलो बस वह वश हो जायगा. दश हातका वहुत जलदी काम करता है तरकीब साथमें भेजी जाती है. .. नोट:--हाथा जोडी ओर सियाल सिंगी इन प्रभावशाली वस्तुओने जनतामे बहुतही धुम मचाई है इन वस्तुओंकी उपरा उपरी मांगणी आनेसे नयास्टॉक मंगवाना षडा शेकडं। प्रमाण पत्र आये है. ओर उनकी मुल कीमत से बहुतही कम किमत रखी है. आपभी इन वस्तुओंका जरूर उपयोग करे. Aho I Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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