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________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ ___५३ अर्थः-इष्ट राशिनो जे बीजो भाग, तेमांथी चार बाद करतां जे अंक प्राप्त थाय तेने बीजा कोठामा स्थापवो, अने तेनाथी अकेक अधिक अंक ने अनुक्रमे ९ मा चोथा सातमा पांचमा त्रीजा छटा पहेला अने आठमा [=९-४-७-५-३-६-१-८ ओ नंबरवाळा आठ ] कोठाओमां स्थापवो. ॥ ३॥ विंशतेन त्रयोभागा-स्तेनाष्टादशयंत्रवत् ॥ द्वितीयगेहे द्वितीयं । दत्वामार्ग समाश्रयेत् ॥४॥ अर्थः-परन्तु अहिं वीशना यंत्रमांत्रण भाग पूर्ण थता नथी, ते कारणथी अढारना यंत्रनी पेठे बीजा गृहमा २ ना अंक स्थापीने त्यारबाद आगळनो मार्ग लेवो [ अटले ३-४-५-६-७-८-इत्यादि अंकोनी स्थापना ९-४७-५-३ इत्यादि गृहोमां करवी. ॥४॥ सर्वस्थानेषु चैकांकः । परमश्वरवाचकः ॥ मंत्रपाठे प्रणववत् । धार्य कार्यस्य सिद्धिदः ॥५॥ अर्थः-पुनः मंत्र पाठमां जेम प्रणव (ॐ) नी स्थापना अवश्य थाय छे, तेम आ विंशतियंत्रना अंकोमां पण परमेश्वरनो वाचक अने सर्व कार्यनी सिद्धि करनारो अवो १ नो अंक सर्व गृहोमा स्थापवो ॥५॥ १ अप्रमाणे स्थापवाथी आ अंक स्थापना थई | १० | १२ | १८ | २ सर्व गृहोमां १ नो अंक स्थापवाथी | आ स्थापना थाय, परंतु १४ १७ ११ | १६ | ११ | १३ . ४.-३-८ इत्यादि गति यवनपद्धति प्रमाणे स्थापतां प्रमाणे अंक स्थापना थई. जेमा २ तथा ६ नी साथेज आव्यो छे, परन्तु सर्व गृहोमां १ नो अंक आवे तेवा यंत्रो हजी आगळ अन्य पध्धति दर्शावाशे. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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