SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ इति विजययंत्रे विंशति यंत्रांक प्रतिष्टा १० ॥ उ. क्ष. २० वै. म. २० ईशानेशदिगी १० श्वर स्थितिरपि स्वांगेपिपंचाननद्वैगुण्याद्वय द्वयमर्ध तोद्रितनया रोधे न हंसद्वयात् ॥ अष्टौसिद्धय एव मूर्तयइवांभोराशिनिर्मथनं । सप्रांबा नवनेत्र षट् भुजधरस्यास्मात् ज्वरस्योद्भवः ॥१॥ अर्थः-ईशान दिशामां १० नो अंक ते ईश्वरनी-महादेवनी शरीरसंबंधि दशस्थितीने सूचव नारो छे, कारण के महादेवनुं पंचानन नाम होवाथी पंच मुख छे, अने अर्धांगमां पार्वती होवाथी ये शरीर महादेवनां थयां तेथी पांचने बमणाकरतां १० स्थिति थई. तथा अर्धांगे पार्वती होवाथी महादेव द्विरुप थवाथी दश पछी २ नो अंक आवे छे. तथा आठ सिद्धि अज जेनी आठ मूर्ति जेवी छे, तेथी ८ नो अंक आवे छे, तथा अंभोराशि =समुद्रनुं मंथन क्युं तेथी समुद्र साथनी संख्याओ गणाता होवाथी ७ नो अंक आवे छे, तथा अनाथी नवनेत्र अने छ भुजा वाळा ज्वर ( ) नी उत्पत्ति होवाथी ( त्रिमूर्ति होवाथी ) नव नेत्र अने छ भुजानी अपेक्षा ९ तथा ६ नो अंक आवे छे, ॥१॥ संख्यैकादशहनयी विजयकृद्दानंजयस्यार्जुनेऽप्यैश्वर्यार्थिषु विंशयंत्र करणे ध्येयानि वस्तून्यतः ॥ यावद्दर गता रमापिपरमाांगीभवंती स्थिरा। गेहेतद्वहुघा भवेञ्चवसुधाधीशोपिवश्यः स्वयं ॥ २॥ Aho I Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy