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________________ ॥ श्रीजर्जुनपताका ॥ अर्थ:-तथा छही सातमी आदि गतिमाथी ८ नो अंक छे, तथा त्रीजी चोथी विगेरे गतिमां पण आठनो अंक छे तेथी आठनो अंक वा जिनेश्वरो दक्षिण अने पश्चिम दिशिने वच्चे पण रहेला गणवा. ॥२२॥ उत्तमा क्षत्रिय गतिः । षट् सप्ताद्या ततःस्मृता ॥ पद्माकृतौ विंशयंत्रे । तथैवाष्ट निवेशिताः ॥ २३ ॥ अर्थ:-क्षत्रिय गति उत्तम छे, तेथी छ अथवा सातथी प्रारंभीने (पूर्वमां ६ अथवा ७ नो अंक स्थापीने ) विंशति यंत्र होय छे, अने ते कारणथीज पद्माकृतिवाळा विंशति यंत्रमा पण ८ नो अंक तेवी रीतेज [अटले ६-७ नी वच्चेज ] रहेलो छे-स्थापेलो छे. ॥ २३ ॥ यद्यप्यंक परावृत्ति । गतिभेदेन दृश्यते ॥ नास्तिदिग् निश्चयःप्रोक्तास्तथाप्येषा व्यवस्थितिः॥२४॥ अर्थ:-जो के गतिभेदोधी अंकपरावृत्ति देखाय छे तेथी [ अटले भिन्नभिन्न गति बडे स्थपाता विंशति यंत्रोमां अमुक अंक अमुक गृहमांज रही शके अवो ] दिशिनो निश्चय कह्यो नथी, तो पण विशेषतः आ आगळ कहेवाथी व्यवस्था निश्चित कहे छे. ॥ २४॥ पक्षार हि ९सिंधु ४ शैला ७ दि-रुत्तमा ब्राह्मणेगतिः ॥ अनुरोधादियंतस्या । प्रतिष्टांकेषुनिश्चिता ॥ २५॥ अर्थः-पक्ष-२ अहि-९ सिंधु-४ शैल-७ इत्यादि क्रमवाळी ब्राह्मणगतिज उत्तम छे, माटेते अनुरोधथी [ ते ब्राह्मणगतिने अनुसरीने ] अंकोने विषे ओज प्रतिष्ठा-स्थापनक्रम (पूर्वमा २ दक्षिणमां ९ उत्तरमा ४ मध्यमां ७ इत्यादि घणीवार वर्णवायेलो क्रम ] निश्चिंत थयो छे. ॥ २५॥ इति विजययंत्रे विंशति यंत्रांकप्रतिष्ठा ॥ इति अंक हेतुः॥ १ प्रथम वीस प्रकारनी गतिओ दर्शावी छे तेमांनी गति अथवा ( इशाननां ६ वा ७ थी प्रारंभाती क्षत्रियगति. तेवीज रीते वैश्य गति. इत्यादि. Aho I Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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