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________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ पक्षारहि सिंधु ४ नग ७ वाण५गुणतुचंद्र १ । नागैः ८ क्रमांक धरणे विजयार्जुनस्य ॥ अस्यांगतौ क्रमिक पंचक लंघनेन । षट्स्थापने भवति विंशति यंत्र मंत्र ॥ १ ॥ अर्थ:-पक्ष-२, अहि=९, सिंधु-४, नग=७, बाण=५, गुण=३, ऋतु-६, चंद्र-१ [परन्तु अहिं बिंदु सहित १०], नाग ८ (२-९-४-७-५-३६-१०-८) अंकोने अनुक्रम प्रमाणे स्थापतां [अटले २-३-४-५-६-७७ ८-९-१० ने अनुक्रमे वीजा श्लोकमां दर्शाव्या प्रमाणे स्थापतां] अर्जुननो विजय यंत्र नामनो बने छ । वळि विंशति यंत्रनी गतिमां (अंकस्थापन पद्धतिमां)५ नो अंक उलंघीने ६ थी स्थापन करतां अहिं विंशतियंत्र बने छे [जेथी १० ने स्थाने ११' नो अंक प्राप्त थाय छे]. ॥१॥ तत्रैक कोण गणने खलु विंशति स्यात् । सैकाथ तत्रतु षडंक पदेपि पंच ॥ भाव्याततो भवति कोपिन दोषलेशः। क्लेशोन्यथा न किलयंत्र गते निवेशः ॥ २ ॥ अर्थः-त्यां विंशति विजय यंत्रमा[दिशिश्रेणि तो वीस वीसनी थाय छे, परन्तु ] विदिशिश्रेणि गणतां अक विदिशिश्रेणिमां निश्चय २० गणाय छे, परन्तु बिजी विदिशिश्रोणि गणतां २१ थाय छे, माटे ते अक श्रेणिमां ते कोठाने विषे [ ६ ना कोठामां] ६ ना अंकने स्थाने ५ नो अंक पण स्थापवो, अने ते रीते ते बिजी विदिशिश्रेणि विचारवी, गणवी, तेथी कोई लेशमात्र पण दोष नथी, अने जो तेमन गणीये तो (६ स्थाने ५ न गणीये तो ) क्लेशरूप गणाय, तेमज यंत्र गतिनो [यंत्रनी रीतिनो] निवेश पण थाय नहिं (यंत्र रचना पण सम्यक् गणाय नहिं ). ॥२॥ १५ ना अंकनु उल्लंघ करीने (पांचने बदले ) ६ नो अंक स्थापतां अन्ते ११ नो अंक आवे छे, जेथी यंत्रमा स्थपातां अंक अनुक्रमे २-३-४- (५) ६-७-८-९१०-११ अ प्रमाणे पू०-०-उ--वा०-म० अ०-द०-इ०-५० दिशामां स्थपाय छ. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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