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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ८० ॥ नर नारक तिर्यञ्च देव इनके विभव भोगकरण विषयरूप इन्द्रियनिकी क्रियादि सब पुद्गल नाट है । द्रव्यकर्म नोकर्मादि सब पुद्गल अखारा है। तामैं तूं चिदानंद रंजन है है होय है। अपनी जान है। अपने दर्शनज्ञानचारित्रादि अनंत अखारा गुणका परि-है। है णति पातरा नाचे स्वरूपरस उपजा जेते गुणकौं वेर्दै द्रव्य वे सब भाव भये सत्ता है मृदंग प्रमेय ताल इत्यादि सब निज अखारा है। ऐसे अपने निज अखारेमैं रांज, परके अखारेमैं” ममत्व कीया जिसका जन्मादि दुःखफल अपनां माया अपनें सहजाहै स्वादी होय परप्रेम मिटाय अचेतना प्रकाशका विलासरूप अतीन्द्रियभोग भोगि कहा है है झुठे ही सुनें जडमैं आपा मान है । अर परकौं कहै- हमकौं दुःख यह दे है । यामैं है शक्ति दुःख देनेकी नाहीं। विरानै सिर झूठा उलाहना दे है अपनी हरामजादगीकौं है न देखे है । अचेतनकौं नचावत फिरत है, सो लाशहु न आवत है । मडेसौं सगाई है १ करि अब हम इससौं ब्याह करि संबंध करेंगे सो ऐसी वात लोकमैंहूं निंद्य है। तुम तो है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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