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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ७९ ॥ १ घढा लाल श्याम पीत हरितरूप भये आकाश वैसा न भया। जैसैं रतनपरि मांटी है है बहुत लपटी परि रतनका प्रकाश मांटीके लपटें न गया। अंतरशक्ति ज्योंकी त्यों है है है । त्यौं आतमाके अशुद्धभाव भयें आतमाका दरसन ज्ञानकी अंतर ज्यौंकी सौं है है है। पर पुद्गलका नाट वहुत बन्या है। सो पुद्गलका खेल जानु, तेरा आतमा है खेल मति जानै ॥ है कहिये हैं दशधा परिग्रह क्षेत्र, वाग, नगर, कूप, वापी, तडाग, नदी आदि जेतेक है हैं पुद्गल माता पिता कलत्र पुत्र पुती वधू वंधू स्वजनादि जावंत सर्प सिंह व्याघ्र गज है ई महिषादि जावंत दुष्ट अक्षर शब्द अनक्षर शहादि वाग गव्यग स्नान भोग संजोग वियोग क्रिया जावंत परिग्रह मिलाप सो वडा परिग्रह नाश सो दलिद्रादि क्रिया है है जावंत चलना बैठना हलना बोलना कांपनादि क्रिया जावंत लडना भिडना चढना है उतरना वाचना खेलना गावना बजावना आदि जावंत क्रिया सर्व पुद्गलका खेल जानु।।
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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