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________________ जुलाई २००३ श्री अष्टापद-कैलाश तीर्थ पर प्रभु-चरणों में समर्पित कुछ मुक्तक एक बार फिर इस गरिमापूर्ण आयोजन के लिए न्यूयॉर्क जैन-संघ को बधाई । सत्यं और सुन्दरं शिव का जो निवास है, ऋषभदेव की तपोभूमि निर्वाण-वास है, दसों दिशाओं में बिखरी है जहाँ दिव्यता अष्टापद-कैलाश विश्व का चिदाकाश है । कुदरत के कण-कण में बिखरी भगवत्ता है, कदम-कदम पर बिछी हुई चिन्मय सत्ता है, उस शिव ऋषभदेव की दैवी उपस्थिति का अनुभव करने, दृष्टि जरुरी अलवत्ता है । धरती और गगन का जो अद्भुत संगम है, नहीं समझना सुगम, पहुँचना भी दुर्गम है, केवल अनुभव-गम्य, परे जो वाणी-स्वर से भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का उद्गम है। हिम-आच्छादित शिखर स्वयं शाश्वत मंदिर है, देवो का अधिवास यहां इसके अन्दर हैं, जैसी श्रद्धा, उनके पाएं पावन दर्शन, जो अरुप के विविध रूप शिव-सुंदर है । अमल थवल यह शिखर सनातन श्वेताम्बर है, है आधार दिगम्बर शाश्वत शिव-शंकर है, ऐसा ही है दृश्य सामने इन आंखो के अम्बर में धरती है, धरती में अम्बर है । महादेव श्री ऋषभदेव का ध्यान करें हम, इस अद्भुत अद्वैत द्वैत का ज्ञान करें हम, गूंज रही है गौरव-गाथा जिसकी जग में श्री अष्टापद जी का अनुसंधान करें हम । आचार्य रूपचन्द्रजी जैन मंदिर आश्रम नई दिल्ली XVII
SR No.009860
Book TitleAshtapad Maha Tirth 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Others
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2012
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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