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________________ अष्टापद नायक आदि प्रभु की अष्टपदी मंगल आरती जगमग जगमग करें आरती आदिनाथ भगवान की । धर्म-चक्र के आद्य प्रवर्तक तीर्थंकर गुणखान जी ॥१॥ अयुधपुरी में जन्मे स्वामी, नाभिराय के प्यारे थे । मरुमाता बलिहारि हुई, तुम त्रिभुवन के उजियारे थे ॥ भरत-बाहुबली, ब्राह्मी-सुन्दरी युत शत सन्तति पाई थी। राजतिलक जब हुआ आप का कर्मभूमि हरषाई थी । उन्हीं से आदि-देव कहाये ऋषभदेव भगवान जी । धर्म-चक्र के आद्य प्रवर्तक तीर्थंकर गुणखानजी ॥२॥ असि-मसि-कृषि की शिक्षा दे जन-गण का कष्ट मिटाया था। विद्या-शिल्प-वणिज सिखला कर धर्म मार्ग दिखलाया था ।। भारत देश के जनक भरतजी अब भी माने जाते हैं । लिपि ब्राह्मी ओ अंक सुन्दरी अब भी जाने जाते हैं । गोम्मटेश बाहुबली जगत के अचरज हैं महान जी । धर्म-चक्र के आद्य प्रवर्तक तीर्थंकर गुणखानजी ॥३॥ वैराग्य-निमित्ति नीलांजन-नर्तन, दीक्षास्थली प्रयाग-पुरी । अक्षय त्रिति इक्षु रस आहारदा हस्तिना-नृप श्रेयांसश्री ॥ ज्ञान-सूर्य पुरिमताल पे ऊगा, अष्टापद निर्वाण थली । मानतुंग के भक्ति-स्त्रोत से गई टूट तालों की लड़ी ॥ कुण्डलगिरि बड़े-बाबा की है मूरत अति महान जी । धर्म-चक्र के आद्य परवर्तक तीर्थंकर गुणखान जी ॥४॥
SR No.009860
Book TitleAshtapad Maha Tirth 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Others
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2012
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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