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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth. हुए बताया है- नाभि के मरुदेवी रानी के गर्भ से महान् बुद्धिधारक राजाओं में श्रेष्ठ, समस्त क्षत्रियों द्वारा पूज्य ऋषभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। ऋषभदेव अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को राज्य सौंपकर तथा ज्ञान और वैराग्य का अवलम्बन लेकर इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने लगे। अपनी आत्मा में ही आत्मा द्वारा परमात्मा की स्थापना करके निराहारी रहने लगे। ऐसे समय में उनके केश बढ़ गये थे । आशाओं से विप्रमुक्त सन्देह से रहित उनकी साधना उन्हें मोक्ष ले जाने में सहायक हुई । ६६० शिवपुराण में ऋषभ का उल्लेख करते हुए लिखा है, कि नाभि के ऋषभादि मुनीश्वर पुत्र हुए और उन ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए उन सब पुत्रों में भरत बड़े थे। नौ पुत्रों ने दीक्षा धारण कर वीतराग पद को प्राप्त किया । भगवान् ऋषभदेव की कर्म-परायण बुद्धि ने शेष इक्यासी पुत्रों को कार्य कुशल बना दिया और वे सब कार्य सम्हालने लगे। क्षत्रियोचित कर्त्तव्य का पालन कर अन्त में मोक्ष मार्ग के पथिक बने। 3 इसी प्रकार आनेपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, विष्णुपुराण, कूर्मपुराण नारदपुराण" वाराहपुराण, स्कन्धपुराण आदि पुराणों में ऋषभदेव भगवान् का नामोल्लेख ही नहीं, वरन् उनके जीवन की घटनाएँ भी विस्तृत रूप से दी गई हैं। ७४ ६८ इस प्रकार सभी हिन्दु - पुराण इस विषय में एकमत हैं, कि नाभि के पुत्र ऋषभदेव, उनकी माता मरुदेवी तथा पुत्र भरत थे जो अपने सौ भाइयों से ज्येष्ठ थे। ६६ नामेनिसर्ग वक्ष्यामि हिमांकेऽस्मिन्नबोधत । नाभिस्त्वजनयत्पुत्रं मरुदेव्यां महामतिः ।। ऋषमं पार्थिवं श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूजितम् । ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः ।। सोऽभिषिच्याऽपि ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः । ज्ञानवैराग्यगाश्रित्य जितेन्द्रिय महोरगान् ।। निराशस्त्यक्तसन्देहः शैवमाय परं पदम् । लिंगपुराण, ४८।१९-२३ ६७ तस्य पुत्रास्तदा जाता ऋषभाद्याः मुनीश्वराः । तस्य पुत्रशतं ह्यासीदृषभस्य महात्मनः । सर्वेषां चैव पुत्राणां ज्येष्ठों भरत एव च । नवयोगीन्द्रतां प्राप्ताः वीतरागास्तथाऽभवन् ।। जनकस्य तु विज्ञातं तैर्दत्तं तु महात्मनः । एकाशीतिः ततो जाताः कर्ममार्गपरायणाः । क्षत्रियाणां यथाकर्म कृत्वा मोक्षपरायणाः । ऋषभश्वोर्वरिताना हिताय ऋषिसत्तमाः । ६८ जरामृत्युभयं नास्ति धर्माधमों युगादिकम्ः । नाधर्म मध्यमं तुल्या हिमादेशात्तु नाभितः ।। ऋषभो मरुदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत् । ऋषभोदात्त श्रीपुत्रे शाल्यग्रामें हरिं गतः । - आग्नेयपुराण १०।११-१२ ७० शिवपुराण ५२।८५ ६९ नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्यां महाद्युतिम् । ऋषभं पार्थिवं श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ॥ न ते स्वस्ति युगावस्था क्षेत्रेष्वष्टुस सर्वदा । हिमायं तु वै वर्ष नाभेरासीन्महात्मनः ।। तस्यर्षमोऽवत्पुत्रो मरुदेव्यां महाद्युतिः । ब्रह्माण्डपुराण पूर्व १४ । ५३ ७० ऋषभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य सः ।। - विष्णुपुराण, द्वितीयांश, अ. १।२६-२७ ७९ हिमाद्ययं तु यद्वर्ष नाभेरासीन्महात्मनः । तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रेो मरुदेव्यां महाद्युतिः ।। ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रः शताग्रजः । सोऽभिषिच्यर्षमः पुत्रं भरतं पृथिवीपतिः । कूर्मपुराण ४१।३७।३८ ७२ नारदपुराण, पूर्वखंड, अ. ४८ ७३ नाभिर्मरुदेव्यां पुत्रमजनयत् ऋषभनामानं तस्य भरतः पुत्रश्च । ७४ नामः पुत्रश्च ऋषभः ऋषभाद् भरतोऽभवत् । -स्कन्धपुराण अ. ३७ Rushabhdev: Ek Parishilan 526624 - वाराहपुराण अ. ७४
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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